इनसाइडर ट्रेडिंग नियमों को और सख्त करने की तैयारी, 'प्राइस सेंसिटिव जानकारियों' की परिभाषा बदलेगी SEBI

सेबी को लगता है कई कंपनियां कानून का पालन सही तरीके से नहीं कर रही हैं. इसलिए सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि इनसाइडर ट्रेडिंग के नियमों को थोड़ा और कठोर करने की जरूरत है.

Source: Reuters

मार्केट रेगुलेटर सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने इनसाइडर ट्रेडिंग के नियमों को और ज्यादा सख्त करने की तैयारी में हैं. इसके लिए Unpublished Price Sensitive Information (UPSI) की परिभाषा को बदलने का प्रस्ताव मार्केट रेगुलेटर ने SEBI ने दिया है.

UPSI यानी ऐसी सूचनाएं जिन्हें प्रकाशित नहीं किया गया है और जो शेयरों की कीमतों पर असर डाल सकती हैं. जैसे- किसी विलय, अधिग्रहण और निवेश से जुड़ी जानकारियां.

SEBI के नए प्रस्ताव में क्या है?

दरअसल, सेबी को लगता है कई कंपनियां कानून का पालन सही तरीके से नहीं कर रही हैं. इसलिए सेबी ने प्रस्ताव दिया है कि इनसाइडर ट्रेडिंग के नियमों को थोड़ा और कठोर करने की जरूरत है, इसलिए UPSI की परिभाषा बदलने की जरूरत है.

SEBI के प्रस्ताव के मुताबिक - वो सभी घटनाएं (events) जिन्हें लिस्टिंड एंड डिस्क्लोजर आवश्यक्ताओं के रेगुलेशन 30 के तहत महत्वपूर्ण माना जाता है, अब इनसाइडर ट्रेडिंग प्रैक्टिस को रोकने के मकसद से प्राइस सेंसिटिव जानकारी के दायरे में आएंगी.

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लिस्टिंग रेगुलेशन के मुताबिक, महत्वपूर्ण जानकारियों में ये चीजें शामिल हैं.

  • कोई भी जानकारी जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध किसी भी जानकारी को महत्वपूर्ण रूप से बदल सकती है.

  • कोई भी जानकारी जिसकी वजह से बाजार में महत्वपूर्ण रिएक्शन आ सकता है

  • कोई भी जानकारी जिसे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा महत्वपूर्ण माना गया है.

ये उन घटनाओं की फेहरिस्त के अलावा है जिन्हें रेगुलेटर्स ने महत्वपूर्ण माना है. जैसे- विलय और अधिग्रहण, सिक्योरिटीज में बदलाव, रेटिंग में बदलाव, सिक्योरिटीज का बायबैक वगैरह.

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क्यों करना पड़ रहा है नियमों को सख्त?

मार्केट रेगुलेटर SEBI ने अपनी पिछली बोर्ड बैठक में क्या 'महत्वपूर्ण' माना जाए, इसकी एक सीमा की भी मंजूरी दी थी.

इनसाइडर ट्रेडिंग के नियमों में ये बदलाव क्यों किया गया? दरअसल- मार्केट रेगुलेटर SEBI ने पाया है कि कई मौकों पर ऐसी सूचना जिसे प्राइस सेंसिटिव के रूप में बताया जाना चाहिए था, जांच से बच गई क्योंकि कंपनियां ऐसा करने में नाकाम रहीं.

ये देखा गया कि कंपनियां केवल उन चीजों को ही वर्गीकृत करती हैं जो नियमों के तहत स्पष्ट रूप से दी गई हैं. इसें कई तरह की जानकारियां शामिल हैं जैसे - वित्तीय नतीजे, डिविडेंड, कैपिटल स्ट्रक्चर में बदलाव, विलय और प्रबंधन के स्तर पर किसी भी तरह का बदलाव. इससे हो ये रहा था कि बिक्री से संबंधित जानकारी, विस्तार योजना और संभावित निवेश जैसी हर दूसरी जानकारी, जो कीमतों पर असर डाल सकती थी, जांच के दायरे में आई ही नहीं और बच गई.

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मार्केट रेगुलेटर SEBI और स्टॉक एक्सचेंजों ने जनवरी 2021 और सितंबर 2022 में एक स्टीड की. जिसमें ये पाया गया कि इस अवधि के दौरान कंपनियों की ओर से जारी 1,099 प्रेस रिलीज में से 227 मामलों में प्राइस मूवमेंट 2% से ज्यादा था, हालांकि, उनमें से केवल 18 को ही कंपनियों की ओर से प्राइस सेंसिटिव की कैटेगरी में रखा गया था.

यानी इससे ये पता चलता है कि कर्मचारियों की ओर से इनसाइडर ट्रेडिंग से जुड़े कई मामलों में, ज्यादातर कर्मचारी खुद का बचाव करने में सक्षम थे क्योंकि कंपनी खुद जानकारी को प्राइस सेंसिटिव के रूप में वर्गीकृत करने में विफल रही.

इस प्रस्तावित बदलावों पर 2 जून तक टिप्पणियां मांगी गई हैं.

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