Mutual Funds: क्या होता है म्यूचुअल फंड का एक्सपेंस रेश्यो, रिटर्न पर कैसे पड़ता है इसका असर?

आइए जानते हैं कि क्या है ये एक्सपेंस रेशियो और म्यूचुअल फंड में किए गए आपके निवेश पर इसका क्या होता है असर. 

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म्यूचुअल फंड (Mutual Fund) में पैसे लगाते समय आप क्या देखते हैं? पिछले कुछ बरसों के दौरान उसके सालाना रिटर्न के आंकड़े? फंड मैनेजर की हिस्ट्री और परफॉर्मेंस? म्यूचुअल फंड का कंपोजिशन यानी फंड ने किन शेयरों या बॉन्ड्स वगैरह में निवेश किया है?

किसी म्यूचुअल फंड में निवेश से पहले इन तमाम बातों पर विचार करना बिलकुल जरूरी है. लेकिन एक बात और है, जिस पर आपको जरूर गौर करना चाहिए. म्यूचुअल फंड के रिटर्न पर असर डालने वाला ये फैक्टर है टोटल एक्सपेंस रेश्यो (TER), जिसे आम बोलचाल में सिर्फ एक्सपेंस रेश्यो भी कहते हैं. आइए जानते हैं कि क्या है ये एक्सपेंस रेश्यो और म्यूचुअल फंड में किए गए आपके निवेश पर इसका क्या होता है असर. 

टोटल एक्सपेंस रेश्यो क्या है? 

टोटल एक्सपेंस रेश्यो (TER) वो रकम या फीस है, जो म्यूचुअल फंड चलाने वाली एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) आपके निवेश को सही ढंग से मैनेज करने के एवज में आपसे वसूल करती है. इसमें उसकी ऑपरेटिंग कॉस्ट, मसलन - एडमिनिस्ट्रेटिव फीस, मैनेजमेंट फीस और मार्केटिंग के खर्चों समेत तमाम तरह के खर्च शामिल हैं.

TER को म्यूचुअल फंड की नेट एसेट वैल्यू (NAV) के प्रतिशत के रूप में बताया जाता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो एक्सपेंस रेश्यो रिटर्न का वो प्रतिशत है, जो आप अपने निवेश को मैनेज करने के लिए AMC को देते हैं. लेकिन आपको एक्सपेंस रेश्यो का भुगतान अलग से नहीं करना पड़ता. एसेट मैनेजमेंट कंपनी इसे म्यूचुअल फंड के ग्रॉस रिटर्न में से काट लेती है. इसे म्यूचुअल फंड मैनेज करने की प्रति-यूनिट लागत (per-unit cost) भी कहा जा सकता है. हर म्यूचुअल फंड में यह लागत अलग-अलग हो सकती है. 

SEBI के नियमों के तहत म्यूचुअल फंड्स मैनेज करने वाली कंपनियों को एक तय सीमा के भीतर एक्सपेंस रेश्यो वसूल करने की छूट दी गई है. इक्विटी फंड्स (Equity Funds) के मुकाबले डेट फंड्स (Debt Funds) का एक्सपेंस रेश्यो कम होता है, जबकि एक्टिवली मैनेज्ड फंड्स (actively managed mutual funds) के मुकाबले इंडेक्स फंड जैसे पैसिव फंड्स (Passively Managed Mutual Funds) का एक्सपेंस रेश्यो काफी कम होता है. 

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रिटर्न पर एक्सपेंस रेश्यो का असर 

म्यूचुअल फंड के रिटर्न पर दो बातों का सीधा असर पड़ता है - पहला, फंड का परफॉर्मेंस और दूसरा, उसका TER यानी टोटल एक्सपेंस रेश्यो. दो फंड्स का परफॉर्मेंस अगर एक जैसा हो, तो भी उनके नेट रिटर्न में TER की वजह से अंतर आ सकता है. आमतौर पर, बाकी बातें समान हों तो TER जितना कम होगा, नेट रिटर्न उतना ही अधिक होगा. इसे एक उदाहरण की मदद से समझते हैं. 

यही वजह है कि किसी फंड की NAV पर उसके TER का सीधा असर पड़ता है. TER की इस अहमियत को ध्यान में रखते हुए ही सेबी ने सभी म्यूचुअल फंड कंपनियों के लिए अपनी तमाम स्कीमों के TER की पूरी जानकारी हर दिन अपनी वेबसाइट और एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) की वेबसाइट पर जारी करना अनिवार्य कर दिया है. किसी भी म्यूचुअल फंड की हर दिन घोषित की जाने वाली NAV का आंकड़ा TER को घटाने के बाद ही जारी किया जाता है.

मान लीजिए, आपने दो म्यूचुअल फंड्स - फंड A और फंड B में 10-10 हजार रुपये का निवेश किया. दोनों के एक्सपेंस रेश्यो अलग-अलग हैं. फंड A का TER 1% और फंड B का 2% है. इन दोनों ही फंड्स पर आपको 10% का एक बराबर ग्रॉस रिटर्न मिलता है. लेकिन TER अलग-अलग होने की वजह से फंड A का नेट रिटर्न 9% और फंड B का नेट रिटर्न 8% आएगा. 

इस उदाहरण से साफ है कि TER जितना अधिक होगा, फंड का नेट रिटर्न उतना ही कम रहेगा. इसके अलावा ज्यादा TER इस बात की गारंटी भी नहीं है कि उस फंड को बेहतर ढंग से मैनेज किया जा रहा है. कम एक्सपेंस रेश्यो वाला फंड भी बेहतर रिटर्न दे सकता है. इसलिए अगर आपको निवेश करते समय एक जैसे दो फंड्स में किसी एक को चुनना हो, तो एक्सपेंस रेश्यो फैसले की अहम वजह हो सकता है. 

डेट फंड्स पर ज्यादा होता है TER का असर 

ये बात भी ध्यान में रखें कि आम तौर पर डेट फंड्स पर एक्सपेंस रेशियो का ज्यादा असर पड़ता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उनका रेट ऑफ रिटर्न आम तौर पर कम होता है. मिसाल के तौर पर 7 या 8% रिटर्न देने वाले डेट फंड का एक्सपेंस रेशियो अगर 1.5% हो, तो भी नेट रिटर्न 5.5-6.5% ही रह जाएगा. जबकि 2% एक्सपेंस रेशियो होने पर भी 10-12% रिटर्न देने वाले इक्विटी फंड का नेट रिटर्न 8 से 10% रहेगा. सिर्फ एक साल के लिए देखने पर रिटर्न में 1-1.5 % का अंतर आपको शायद अधिक न लगे, लेकिन लंबी अवधि के दौरान कंपाउंडिंग के चलते इसका असर काफी बड़ा हो सकता है. इसीलिए अगर आपने अपने निवेश के उद्देश्यों, रिस्क प्रोफाइल और टाइमलाइन समेत तमाम बातों पर विचार करने के बाद कुछ म्यूचुअल फंड्स को शॉर्टलिस्ट किया है और उनमें से किसी एक में निवेश करने जा रहे हैं, तो अंतिम फैसला करने से पहले उनके एक्सपेंस रेशियो की तुलना भी करना बेहद जरूरी है. 

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