Explainer: क्या है 'डेट सीलिंग' संकट, जिससे अमेरिका पर मंडरा रहा डिफॉल्ट का खतरा?

हर साल अमेरिका के खर्चे उसकी कमाई से काफी ज्यादा होते हैं, जिससे एक डेफिसिट या घाटा पैदा होता है. बीते 10 सालों के दौरान ये घाटा 400 बिलियन डॉलर से बढ़कर 3 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया है.

Source: Reuters

बीते कुछ दिनों से अमेरिका की 'डेट सीलिंग' को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है, कहा जा रहा है कि अगर 1 जून से पहले इस पर कोई सहमति नही बनती है तो दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका डिफॉल्ट कर जाएगा. दरअसल, बीते दिनों अमेरिका की ट्रेजरी सेक्रेटरी जैनेट येलेन ने अमेरिकी संसद को चिट्ठी लिखकर ये कहा था कि सरकार कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाए नहीं तो वो जून में अमेरिका के बिलों का भुगतान नहीं कर पाएगी, क्योंकि सरकारी खजाने में पैसे खत्म हो रहे हैं.

डेट सीलिंग संकट को समझिए

मामले की गंभीरता को इस बात से समझा जा सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सिडनी में होने वाली क्वाड मीटिंग को रद्द कर दिया ताकि डेट सीलिंग के मुद्दे को समय रहते सुलझाया जा सके. दरअसल, अमेरिका के सामने डेट सीलिंग की समस्या जो आज खड़ी हुई है, उसके पीछे कई सालों का घटनाक्रम है.

चलिए पहले समझते हैं कि डेट सीलिंग क्या है और क्यों इसकी वजह से अमेरिका के ऊपर डिफॉल्ट का खतरा मंडरा रहा है. दुनिया में सभी देशों के अपने खर्चे होते हैं, सरकारें - सोशल सिक्योरिटी स्कीम, मेडिकल स्कीम, सेना, उद्योगों के लिए इनसेंटिव्स और कई दूसरे तरह के खर्चों को पूरा करती है. इन खर्चों को पूरा करने के लिए सरकारें टैक्स से या दूसरे स्रोतों से कमाई करती हैं. आमतौर पर खर्चे हमेशा कमाई से ज्यादा रहते हैं. इस कड़वी सच्चाई से अमेरिका भी अछूता नही हैं.

अमेरिका अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कर्ज लेता है, लेकिन वो कितना कर्ज ले सकता है उसकी भी एक सीमा है, क्योंकि ये कर्ज चुकाने भी होते हैं. इसी लिमिट को डेट सीलिंग कहते हैं, जिसे बढ़ाने को लेकर मांग उठ रही है. हर साल अमेरिका के खर्चे उसकी कमाई से काफी ज्यादा होते हैं, जिससे एक डेफिसिट या घाटा पैदा होता है. बीते 10 सालों के दौरान ये घाटा 400 बिलियन डॉलर से बढ़कर 3 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया है.

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तो क्या अमेरिका डिफॉल्ट कर जाएगा

देखिए सरकारी बिलों को चुकाने के लिए अमेरिका कर्ज लेता है, जो उसको ब्याज के साथ लौटाना भी होगा. अमेरिकी सरकार कभी लिए बॉन्ड जारी करके तो कभी कोई दूसरी सिक्योरिटीज के जरिए कर्ज उठाती है, लेकिन एक समय के बाद उसकी कर्ज लेने की सीमा खत्म हो जाती है. ऐसे में अगर यूएस ट्रेजरी को सरकारी खर्चों को पूरा करने के लिए पैसों की जरूरत होगी तो उसके पास नहीं होंगे, और वो डिफॉल्ट कर जाएगी.

अमेरिका की ट्रेजरी चीफ जैनेट येलेन कई बार अमेरिकी संसद से कर्जों की सीमा को बढ़ाने के लिए कह चुकी है, ताकि अमेरिका को कम से कम ऐतिहासिक डिफॉल्ट के खतरे से बचाया जा सके. अमेरिका में कर्ज की सीमा अभी 31.4 ट्रिलियन डॉलर है, जबकि अमेरिका अबतक $30.1 ट्रिलियन डॉलर कर्ज ले चुका है.

हालांकि अमेरिका का इतिहास ये भी है कि इस कर्ज की सीमा को कई बार बढ़ाया है. 1960 से लेकर अबतक वो 78 बार इस सीलिंग को बढ़ा चुका है और कभी भी डिफॉल्ट नहीं हुआ है. तो इस बार भी अगर अमेरिकी संसद लिमिट बढ़ा देती है, तो अमेरिका डिफॉल्ट होने से बच सकता है.

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कैसे हुई ये हालत?

आखिर अमेरिका इस हालत में पहुंचा कैसे? देखिए इसके लिए आपको कई दशक पीछे से शुरू करना होगा. 2001 और 2008 के दौरान जब मंदी ने अमेरिका और पूरी दुनिया को घेरा था, तब अमेरिका ने अपने देश को मंदी से उबारने के लिए वित्तीय सिस्टम में पैसा पानी की तरह बहाया था, जो कई सालों तक चलता रहा. 2017 में ट्रम्प की सरकार ने टैक्स में कटौती कर दी, जिससे कमाई का जरिया सीमित हो गया. रही सही कसर कोविड महामारी ने पूरी कर दी. जिससे अमेरिका सरकार के खजाने पर जबरदस्त दबाव बढ़ा. इस दौरान अमेरिका के ऊपर भारी कर्ज चढ़ गया.

सवाल फिर वही, क्या अमेरिका डिफॉल्ट कर जाएगा, इस पर ट्रेजरी सेक्रेटरी जैनेट येलेन का कहना है कि अगर डेट लिमिट को नहीं बढ़ाया गया तो अगले महीने 1 जून से पहले अमेरिका अपने भुगतानों से डिफॉल्ट कर जाएगा. मतलब ये कि 1 जून से पहले पहले अमेरिका को सहमति से डेट सीलिंग बढ़ाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है. जो बाइडेन अपने ताजा बयान में इस बात की घोषणा जरूर कर दी है कि अमेरिका डिफॉल्ट नहीं करेगा, डेट सीलिंग बढ़ाने के लेकर उनकी बातचीत काफी अच्छी रही है और बहुत जल्द ही एग्रीमेंट हो जाएगा. लेकिन जबतक बाइडेन रिपब्लिकन पार्टी को डेट सीलिंग को बढ़ाने के एग्रीमेंट पर राजी नहीं हो जाती, तबतक कोई भी दावा सिर्फ दावा ही रहेगा.

कहां फंस रहा है पेंच?

रिपब्लिकन पार्टी चाहती है कि बाइडेन सरकार अपने खर्चों को कम करे, रिपब्लिकन पार्टी की शर्त है कि अगर बाइडेन सरकार वित्त वर्ष 2022 की सीमा को मानकर ही खर्च करे तो डेट सीलिंग को हटाने पर सहमति बन सकती है. जबकि बाइडेन सरकार इसे रिपब्लिक पार्टी की नई राजनीतिक चाल की तरह देख रही है, क्योंकि अगर बाइडेन सरकार ने जिन योजनाओं का ऐलान किया है उन पर खर्च नहीं करेगी तो उसका असर आने वाले चुनावों पर दिख सकता है. इसलिए वो भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. यहीं पर बात अड़ गई है.

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