भारत में घरेलू कर्ज बीते साल दिसंबर तिमाही में नई ऊंचाई पर पहुंच गया. इससे पता चलता है कि भारत के कंज्यूमर ज्यादा रिस्क वाला उधार ले रहे हैं.
बीते साल अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में हाउसहोल्ड डेट GDP के 39.1% पर पहुंच गया, जो कि बीते साल 36.7% पर था. इसकी जानकारी मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज (Motilal Oswal Financial Services) के निखिल गुप्ता (Nikhil Gupta) और तनीषा लाधा (Tanisha Ladha) ने दी. इसके पहले जनवरी-मार्च 2021 में हाउसहोल्ड डेट 38.6% दर्ज किया गया था, जो कि उस वक्त का रिकॉर्ड हाई था.
नॉन-हाउसिंग डेट, जो कि कुल हाउसहोल्ड डेट का 72% है, हाउसिंग डेट के मुकाबले तेजी से बढ़ रहा है. इससे लोगों के फिजिकल एसेट जुटाने के बजाय अपनी रोजमर्रा के कंज्यूमर गुड्स जुटाने पर खर्च बढ़ाने की जानकारी मिलती है. नॉन-हाउसिंग डेट सालाना आधार पर 18.3% बढ़ा है, वहीं हाउसिंग डेट 12.2% बढ़ा है.
भारत की 60% इकोनॉमी कंजप्शन से चल रही है, लेकिन RBI के लिए जो बात चिंता खड़ी करने वाली है वो अनसिक्योर्ड लोन पोर्टफोलियो है. एक तरफ तो लोगों के पास पैसा कम होता जा रहा है, वहीं रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें बढ़ाकर अनसिक्योर्ड लोन को और महंगा कर दिया है.
रेगुलेटर को चिंता है कि अनसिक्योर्ड लोन का बढ़ता शेयर बैंकों के लिए चिंता का सबब न बन जाए और ये सब देश के ओवरऑल फाइनेंशियल सिस्टम के ऊपर संकट न बन जाए. खराब कर्ज (Bad Debt) ने पहले से ही इकोनॉमी के लिए जरूरी काम को सपोर्ट करने के लिए बैंकों की लेंडिंग को कम कर दिया है.
निखिल गुप्ता और तनीषा लाधा के मुताबिक, दूसरी इकोनॉमी के मुकाबले भारत का हाउसिंग डेट बहुत कम है, लेकिन नॉन-मॉर्टगेज हाउसहोल्ड डेट ऑस्ट्रेलिया और जापान के बराबर है. ये कई बड़े देशों से ज्यादा भी है.