India-China Population Based Economy Analysis: किसी भी देश के लिए जनसंख्या समस्या है या फिर समाधान, ये वहां की कामकाजी आबादी पर निर्भर करता है. आबादी में ज्यादा हिस्सेदारी काम करने वाले लोगों की हो तो ये स्थिति देश की इकोनॉमी के लिए बेहतर होती है.
इसे ऐसे समझ सकते हैं कि डेयरी का काम करने वाले किसी व्यक्ति के पास दुधारू गायों की संख्या ज्यादा है तो उसकी अच्छी कमाई होगी और ज्यादातर गाय दूध देने की अवस्था में न हों तो उनका मेंटेनेंस और चारा, बोझ साबित होगा.
कहने का मतलब ये कि कामकाजी आबादी किसी भी देश के लिए एसेट है और काम नहीं करने वाली आबादी लायबिलिटी है.
हम ये चर्चा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि जनसंख्या पर UN की ताजा रिपोर्ट में हमारे लिए अच्छी खबर छिपी है. UNFPA यानी संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की रिपोर्ट के मुताबिक, 144 करोड़ की अनुमानित जनसंख्या के साथ आबादी के मामले में भारत दुनिया में पहले नंबर पर है. वहीं 142.5 करोड़ की आबादी के साथ चीन दूसरे नंबर पर है.
लेकिन असली खबर ये नहीं है, असली खबर तो ये है कि भारत में 10 से 24 साल की उम्र वाले लोगों की आबादी 26% है. ये वो युवा आबादी है, जो वर्तमान से लेकर आने वाले वर्षों तक प्रोडक्टिव साबित होगी. चीन में ये संख्या अब 18% रह गई है.
इसी तरह भारत में 10 से 19 साल की उम्र के लोगों की आबादी 17% है, जबकि चीन में ये आंकड़ा 12% है.
वहीं 65+ आयु वाली बुजुर्ग आबादी की बात करें तो भारत में इनकी संख्या महज 7% है, जबकि चीन में ये आंकड़ा 15% यानी दोगुना से भी ज्यादा है.
ये आबादी न सिर्फ नॉन प्रोडक्टिव है, बल्कि पेंशन, स्वास्थ्य देखभाल, सुरक्षा वगैरह की दृष्टि से देखें तो देश के लिए ये लायबिलिटी है.
कामकाजी आबादी किसी भी देश के लिए किस तरह एसेट हो सकती है, इसे चीन के उदाहरण से समझ लेते हैं.
वो 1980 का दशक था. सबसे ज्यादा आबादी वाले चीन ने 1978 में ही अपने यहां आर्थिक सुधार शुरू किए. इसने मैन्युफैक्चरिंग, सप्लाई चेन और वर्ल्ड लेबल इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने पर फोकस किया. कम्पल्सरी एजुकेशन पॉलिसी की बदौलत चीन ने हाई क्वालिटी लेबर फोर्स की नींव रखी. ग्लोबलाइजेशन का भी फायदा चीन को पहले मिला.
वहीं, दूसरी ओर भारत में 1991 से आर्थिक सुधार शुरू हुए. वैश्वीकरण और उदारीकरण की नीतियां लागू हुईं, लेकिन भारत ने सर्विस सेक्टर को आगे बढ़ाने पर जोर दिया.
अब पीछे पलट कर देखें तो 1988 में भारत और चीन दोनों देशों की GDP लगभग बराबर थी, लेकिन आज चीन की GDP भारत से करीब 5 गुना (4.74 x) बड़ी है. चीन की इकोनॉमी ने 1998 में ही 1 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा क्रॉस किया था, जबकि भारत 9 साल बाद 2007 में ऐसा कर पाया.
चीन, अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी बड़ी इकोनॉमी के रूप में स्थापित हो गया. उस दौर में जब चीन ने मैन्युफैक्चरिंग हब बनने के लिए लेबर फोर्स के रूप में देश की युवा कामकाजी आबादी का भरपूर इस्तेमाल किया. लेकिन बढ़ती आबादी के बीच उससे एक चूक हो गई.
वो चूक थी- वन चाइल्ड पॉलिसी.
1949 में चीन की आबादी 54 करोड़ थी, जो 1980 तक करीब 97 करोड़ पहुंच गई थी.
ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण के लिए चीन ने वन चाइल्ड पॉलिसी को सख्ती से लागू किया. सख्ती भी ऐसी कि नहीं मानने वालों पर भारी जुर्माना और नागरिक अधिकार तक छीन लिए जाते थे. जबरन गर्भपात तक करा दिया जाता.
2013 में एक फिल्ममेकर दंपती पर तो 3 बच्चे पैदा करने के चलते करीब 9 करोड़ रुपये का जुर्माना ठोंंका गया था.
1980 में लागू की गई इस पॉलिसी का असर ऐसा हुआ कि देश के युवा, बुजुर्ग होते गए. बुजुर्ग और ज्यादा बुजुर्ग होते गए. इनकी तुलना में युवा आबादी कम रह गई.
चीन को जब तक अपनी इस चूक का एहसास हुआ, देर हो चुकी थी. ताजा हाल आप आंकड़ों में देख ही चुके हैं.
हालांकि चीन ने आर्थिक सुधारों के जरिये, दशकों पहले जो पेड़ लगाए थे, उन्हीं के फल अब तक खा रहा है.
चीन को लंबे समय से 'दुनिया का कारखाना' कहा जाता है. दुनिया के ज्यादातर देशों का काम उसके बगैर नहीं चल पाता और इसलिए दुनिया चाइना प्लस वन की तलाश में है.
भारत, दुनिया के लिए इस खांचे में फिट होने की योग्यता रखता है.
आर्थिक सुधारों ने बेशक भारत को सर्विस सेक्टर में इसे आगे बढ़ाया. भारत की GDP में सर्विस सेक्टर की बड़ी हिस्सेदारी है. चीन के 46% की तुलना में भारत में ये आंकड़ा 66% है.
पॉलिसी एक्सपर्ट अविनाश चंद्रा के मुताबिक, हाल के वर्षों में भारत ने दुनिया के लिए मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की भी क्षमता दिखाई है.
इज ऑफ डुइंग और मेक इन इंडिया प्रोग्राम से लेकर न्यू EV पॉलिसी और हरेक सेक्टर में FDI तक, आर्थिक सुधारों के जरिये केंद्र सरकार लगातार देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में आगे बढ़ा रही है. इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो से लेकर स्पेस सेक्टर तक असर दिखने भी लगा है. दुनियाभर की कंपनियां भारत में अपनी फैक्ट्रीज लगा रही हैं.अविनाश चंद्रा, पॉलिसी एक्सपर्ट
अब चूंकि बुजुर्ग आबादी वाले चीन की तुलना में भारत युवाओं का देश है, इसलिए जाहिर तौर पर हमारे पास लेबर फोर्स भी ज्यादा है.
अब बात घूम फिर कर वहीं आती है कि ये जो युवा आबादी है, इसमें ज्यादा से ज्यादा आबादी का कामकाजी होना जरूरी है.
एक्सपर्ट्स कहते हैं, 'देश में स्टार्टअप्स के लिए, बिजनेस के लिए अच्छा माहौल है. नौकरी के साथ रोजगार के भी अवसर बढ़ाने होंगे. और इसमें सरकार के साथ प्राइवेट कंपनियों की भी बड़ी भागीदारी होनी चाहिए.'
बाकी RBI से लेकर IMF तक के आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि इंडियन इकोनॉमी काफी तेजी से ग्रो कर रही है और भारत जल्द ही तीसरी बड़ी इकोनॉमी बनने वाला है.
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