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रियल एस्‍टेट संकट ने कैसे चीन को मंदी की कगार पर ला खड़ा किया है? US के 'सब-प्राइम संकट' जैसी है कहानी

15 साल पहले दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी अमेरिका में जैसे हालात बने थे, आज दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी चीन में भी वही स्थिति दिख रही है. जानिए क्या है माजरा.
NDTV Profit हिंदीनिलेश कुमार
NDTV Profit हिंदी01:28 PM IST, 29 Sep 2023NDTV Profit हिंदी
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29 सितंबर 2008. अमेरिकी बाजार खुले और खुलते ही धड़ाम. शेयर बाजार में भयानक बिकवाली के चलते करीब 1.2 लाख करोड़ डॉलर का मार्केट कैप एक दिन में साफ हो गया.

लीमैन ब्रदर्स बैंक, 2008 की मंदी का मुख्य विलेन था और बाजार की गिरावट का सबसे बड़ा शिकार भी. ये बैंक बर्बाद हुआ था- रियल एस्‍टेट सेक्‍टर की 'बबल-बूम' के बीच बांटे गए 'सब-प्राइम मॉर्गेज लोन' की वजह से.

दुनिया की नंबर वन इकोनॉमी पर इस मंदी की ऐसी मार पड़ी, जिससे उबरने में उसे सालों लग गए.

कुछ याद आ रहा है, वो माह था सितंबर... लेकिन ये क्या बताएं कि हाल दूसरा है... वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है.

15 साल बाद ऐसे ही हालात बन रहे हैं, दुनिया की दूसरी बड़ी इकोनॉमी चीन में. बिगड़ते हालात का पैटर्न यहां भी बिल्कुल वैसा ही है, एकदम अमेरिका की तरह. यहां भी पिछले कुछ वर्षों में रियल एस्‍टेट सेक्‍टर की 'बबल-बूम' बनती दिखी है और यहां भी पिछले कुछ वर्षों में बैंकों ने उसी तरह ताबड़तोड़ लोन बांटे. नतीजा सामने है- एवरग्रांड क्राइसिस, जो चीन की इकोनॉमी के लिए बहुत बड़ा विलेन बन कर उभरा है.

'ड्रैगन' का रियल एस्‍टेट संकट

चीन की इकोनॉमी में रियल एस्‍टेट सेक्‍टर की 25 से 30% हिस्‍सेदारी है. रियल एस्‍टेट क्राइसिस का मतलब है, पूरे चीन की इकोनॉमी पर संकट. हाल के वर्षों में चीन का पूरा प्रॉपर्टी सेक्टर बड़ी मुसीबत में है. रेटिंग एजेंसी S&P के मुताबिक, बीते तीन साल में 50 से ज्‍यादा डेवलपर्स ने या तो डिफॉल्ट किया है या कर्ज चुकाने में नाकाम रहे हैं.

दरअसल, बीते तीन दशक में चीन की बड़ी आबादी ने गांवों से शहरों का रुख किया है. इस बड़ी आबादी के लिए घरों की जरूरत ने शहरों में प्रॉपर्टी बूम को जन्म दिया. रियल एस्‍टेट डेवलपर्स ने इस मौके को भुनाना चाहा और बैंकों से भारी लोन लेकर हाउसिंग प्रोजेक्ट्स की लाइन लगा दी. 2020 खत्म होते-होते, प्रॉपर्टी बूम एक बबल में बदलने लगा था और यहीं से रियल एस्‍टेट क्राइसिस का चरण शुरू हुआ.

क्राइसिस के केंद्र में 'एवरग्रांड'

इकोनॉमी पर रियल एस्‍टेट क्राइसिस के संभावित असर से बचाने के लिए वहां की कम्‍यूनिस्‍ट सरकार ने दखल दिया और औने-पौने दरों पर दिए जाने वाले लोन पर ब्रेक लगाने का फैसला लिया. इसका नतीजा हुआ कि एवरग्रांड ग्रुप और उस जैसे कई बिल्डर्स के सिर पर लिक्विडिटी का संकट आ गया.

चीन की इस प्रॉपर्टी क्राइसिस के केंद्र में है- एवरग्रांड (Evergrande). बिलियनेयर 'हुइ का यान' (Hui Ka Yan) की रियल एस्‍टेट डेवलपर कंपनी ने बैंकरप्‍सी (Bankruptcy) की अर्जी दी है. ब्‍लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार हुइ को इन दिनों पुलिस की निगरानी में रखा गया है, जो ये साबित करता है कि एवरग्रांड, कानूनी तौर पर आपराधिक गतिविधि में प्रवेश कर चुकी है.

$327 बिलियन
से ज्‍यादा का कर्ज है, एवरग्रांड ग्रुप के ऊपर.

ब्‍लूमबर्ग के अनुसार, एवरग्रांड ग्रुप के ऊपर करीब 327 बिलियन डॉलर का कर्ज है. दिसंबर 2021 में एवरग्रांड ग्रुप ने पहली बार डिफॉल्ट किया और इसके बाद चीन के रियल एस्टेट में कुछ और बड़े डिफॉल्ट हुए. एक वक्त ऐसा था जब एवरग्रांड चीन के सबसे बड़े बिल्डर्स में शामिल थी. और आज ये स्थिति है कि एवरग्रांड ने बैंकरप्‍सी की अर्जी दी है.

चीन के संकट ने दिलाई 'सब-प्राइम क्राइसिस' की याद

चीन के संभावित संकट ने अमेरिका के 'सब-प्राइम मॉर्गेज संकट' की याद दिला दी है. प्राइम का मतलब (बेहतरीन) तो आप जानते होंगे. सब-प्राइम का सीधा मतलब है- बेहतरीन से कमतर यानी सीधे शब्दों में कहें तो असंतोषजनक. सब-प्राइम मॉर्गेज लोन का मतलब हुआ, प्रॉपर्टी को गिरवी रखकर दिया गया ऐसा लोन, जिसमें कर्जदार की लोन चुकाने की क्षमता और गिरवी प्रॉपर्टी की वैल्‍यू, दोनों ही संतोषजनक नहीं होते.

ऐसे मामलों में निश्चित है कि लोने देने वाले बैंकों के लिए रिस्‍क ज्‍यादा है. समय से EMI भरे जाने और लोन चुकाए जाने को लेकर आशंका बनी रहती है. ऐसी स्थिति में संभव है कि कर्जदार, डिफॉल्‍ट कर जाए. और ऐसा हुआ तो बैंक के पास रास्‍ता ही क्‍या है? गिरवी प्रॉपर्टी बेचकर रिकवरी होने से रही.

2008 में अमेरिका में पैदा हुए आर्थिक संकट के पीछे ऐसे ही हजारों-लाखों-करोड़ों के कर्ज थे. 2004 से 2006 के बीच ऐसे कर्जों की हिस्‍सेदारी 8% से बढ़कर 20% से ज्‍यादा पहुंच गई थी. इसे ही 'सब-प्राइम मॉर्गेज क्राइसि‍स' कहा गया.

1.2 लाख करोड़ डॉलर
सिर्फ एक दिन में साफ हो गया था, जब 29 सितंबर 2008 को अमेरिकी बाजार खुले थे.

29 सितंबर 2008 को जब अमेरिकी बाजार खुले, तो गिरावट के सारे रिकॉर्ड टूट गए. सिर्फ एक दिन में करीब 1.2 लाख करोड़ डॉलर साफ हो गया था, जो कि उस समय भारत की कुल GDP के बराबर रकम थी. US मार्केट में इससे पहले इतनी बढ़ी गिरावट 1987 में देखी गई थी.

चीन का 'लीमैन' साबित हुआ एवरग्रांड

अमेरिका की मंदी के पीछे लीमैन ब्रदर्स सबसे बड़ी वजह थे. 2002-04 में अमेरिका में होम लोन सस्‍ती दरों पर बेहद आसानी से मिल रहा था, जिसके चलते लोग लोन लेकर प्रॉपर्टी खरीदने लगे और घरों के दाम बढ़ गए. लीमैन ब्रदर्स ने इसे 'मौके' के तौर पर भुनाना चाहा और लोन देने वाली 5 कंपनियों को ये सोचकर खरीद लिया कि आने वाले दिनों में उसे फायदा ही फायदा होगा.

घरों की मांग बढ़ने से प्रॉपर्टी के दाम बढ़ने लगे. सब-प्राइम मॉर्गेज के चलते लोन धड़ाधड़ डिफॉल्‍ट होने लगे. नतीजा ये हुआ कि मार्च 2008 में अमेरिका की दूसरी सबसे बड़ी होम लोन कंपनी 'स्‍टर्न्‍स' डूब गई. फिर लीमैन के शेयर भी 48% तक टूट गए. दूसरी ओर कोरिया डेवलपमेंट बैंक द्वारा इसमें निवेश और बार्कलेज में विलय की डील भी असफल रही. नतीजा, अमेरिका और दुनिया ने देखा.

अमेरिका में लीमैन ब्रदर्स ने बर्बादी की जो कहानी लिखी थी, वैसी ही कहानी चीन में एवरग्रांड की रही है. रियल एस्‍टेट डेवलपर कंपनी एवरग्रांड, चीन के लिए 'लीमैन' साबित हुई है.

शिखर से शून्‍य की ओर

कुछ साल पहले तक दुनिया की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों में शुमार चीन की एवरग्रांड (Evergrande) बर्बादी की कगार पर है. हुइ का यान ने 1996 में एवरग्रांड की शुरुआत की थी. फोर्ब्स के मुताबिक यान की दौलत 3.2 बिलियन डॉलर है, जो कि 2017 में 42.5 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई थी.

साल 2009 में लिस्‍टेड एवरग्रांड ने अब तक 1000 से अधिक हाउसिंग प्रोजेक्‍ट का निर्माण किया. कंपनी को आधिकारिक तौर पर डिफॉल्टर करार दिया जा चुका है और ये 327 बिलियन डॉलर की देनदारी चुकाने के लिए संघर्ष कर रही है. अक्टूबर 2017 में अपने शिखर के बाद से एवरग्रांड का शेयर 99.9% टूट चुका है.

एवरग्रांड ने अमेरिका में खुद को दिवालिया बताया है और न्यूयॉर्क की एक अदालत में चैप्टर-15 के तहत दिवालियापन संरक्षण की अर्जी दाखिल की है. इस चैप्टर के तहत अमेरिका में विदेशी कंपनी की संपत्तियों को सुरक्षा मिलती है.

इंडिट्रेड कैपिटल के ग्रुप चेयरमैन सुदीप बंद्योपाध्याय ने BQ Prime हिंदी से बातचीत में कहा था कि चीन की इकोनॉमी में कमजोरी से दुनियाभर की इकोनॉमी पर असर होगा. उनके मुताबिक, इसका सबसे ज्‍यादा असर मेटल सेक्‍टर पर होगा. चीन में स्‍लोडाउन से भारत के एक्‍सपोर्ट पर भी असर पड़ेगा. हालांकि चीन के परेशानी में पड़ने से भारत को थोड़े अप्रत्‍यक्ष फायदे भी संभव हैं.

(Source: BQ Research, Bloomberg, PTI, BQ Interview, NDTV World, groww.in)

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