Explainer: इनहेरिटेंस टैक्स पर विवाद के बीच, जानिए इससे जुड़ी हर बात और इतिहास

इनहेरिटेंस टैक्स उन पर लगाया जाता है, जिन्हें किसी की मौत के बाद संपत्ति विरासत में मिल रही होती है.

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लोकसभा चुनाव के प्रचार के बीच अचानक एक मुद्दे ने तूल पकड़ लिया. सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप के केंद्र में आ गया एक टैक्स. इनहेरिटेंस टैक्स (Inheritance Tax) या 'विरासत कर' को लेकर घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. ऐसे में इस टैक्स से जुड़ी खास-खास बातों को समझना जरूरी है.

कहां से निकली बात?

हाल ही में इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा (Sam Pitroda) ने विरासत कर (Inheritance tax) के बारे में टिप्पणी की. उन्होंने इस टैक्स का समर्थन करते हुए अमेरिका का उदाहरण दिया था. इसके बाद PM नरेंद्र मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी लोगों पर भारी-भरकम टैक्स थोपना चाहती है और उनकी मेहनत से कमाई संपत्ति को उत्तराधिकारियों को देने से रोकना चाहती है. इसके बाद इस टैक्स के इतिहास-भूगोल और गुणा-भाग का दौर शुरू हो गया.

इनहेरिटेंस टैक्स क्या है?

सबसे पहले इससे संबंधित दो टर्म को ठीक से समझना जरूरी है. एक है- संपत्ति कर/ शुल्क (Estate Tax/ Duty). दूसरा है- विरासत कर (Inheritance Tax). ये दोनों ही टैक्स मृतक और उनकी संपत्ति से संबंधित हैं, लेकिन इनमें फर्क है.

संपत्ति कर/ शुल्क किसी मृत व्यक्ति की संपत्ति की कुल कीमत पर लगता है. यानी मौत के बाद जो संपत्ति ट्रांसफर हो रही होती है, उस पर लगाया जाता है. दूसरी ओर, विरासत कर उन पर लगाया जाता है, जिन्हें किसी की मौत के बाद संपत्ति विरासत में मिल रही होती है.

टैक्स लगाने का मकसद?

इन तरह के टैक्स लगाने के पीछे सरकारों के कुछ खास मकसद होते हैं. समाज में संपत्ति के वितरण में एक हद तक समानता आए. गैर-बराबरी दूर हो. ज्यादा धनी लोगों की संपत्ति का पूरा भाग उनके उत्तराधिकारियों के पास ही न जाकर, एक हिस्सा सरकार के पास भी आए. सरकार को इस तरह के टैक्स या ड्यूटी से राजस्व मिलता रहे, जिससे विकास का काम चलता रहे. ऐसे ही विचारों के साथ कुछ देशों में संपत्ति कर या विरासत कर लगाए गए हैं.

किन-किन देशों में है ये टैक्स?

फाइनेंशियल फर्म प्राइसवाटरहाउस कूपर्स (PwC) के मुताबिक, कई यूरोपीय, अमेरिकी और अफ्रीकी देशों में विरासत कर वाला कानून है. विरासत में मिली संपत्तियों पर टैक्स लगाने वाले यूरोप के कुछ बड़े देश हैं- फ्रांस (60%), जर्मनी (50%), UK (40%), स्पेन (33%) और हंगरी (18%).

ज्यादा विरासत कर लेने वाले दुनिया के कुछ अन्य देश हैं- जापान (55%), दक्षिण कोरिया (50%), इक्वाडोर (37%), चिली (25%), दक्षिण अफ्रीका (25%) और ताइवान (20%).

जहां तक अमेरिका की बात है, वहां के हर राज्य में विरासत कर का कानून नहीं है. अमेरिका के केवल 6 राज्यों- आयोवा, केंटुकी, मैरीलैंड, नेब्रास्का, न्यू जर्सी और पेंसिल्वेनिया में ही यह कानून लागू है. इन राज्यों में टैक्स की दरें अलग-अलग हैं. इनमें विरासत में मिली संपत्ति के 1% से लेकर 20% तक टैक्स लिया जाता है.

भारत में यह टैक्स किस रूप में था?

विरासत की संपत्ति को लेकर भारत में टैक्स कुछ अलग रूप में था. यह देश में 1953 से लेकर 1985 तक बना रहा. शुरुआत साल 1953 में हुई, जब देश की संसद ने एस्टेट ड्यूटी एक्ट पारित किया था. इसे 'डेथ टैक्स' भी कहते हैं. इस कानून के मुताबिक, किसी व्यक्ति की मौत के बाद उसकी चल या अचल संपत्ति को किसी उत्तराधिकारी को दिए जाने पर यह ड्यूटी लगती थी. यह चल-अचल संपत्ति की मूल कीमत पर लगती थी. इसमें खेती की जमीन भी शामिल थी.

यह कानून तभी लागू होता, जब संपत्ति के मालिक की मौत वयस्क के रूप में हुई हो. माने उसने 18 साल की आयु पूरी कर ली हो. साथ ही यह एस्टेट ड्यूटी विरासत में मिले उतने ही भाग पर लगती, जो कानून के हिसाब से इसके दायरे में आ रहा हो.

एक शर्त यह थी कि अगर व्यक्ति की मौत भारत में रहते हुई हो, तो उसकी भारत और बाहर की चल-अचल, हर तरह संपत्ति पर शुल्क लगता, जिसे उत्तराधिकारी को दिया गया हो. अगर मौत भारत से बाहर हुई हो, तो भारत के बाहर की अचल संपत्तियों पर टैक्स नहीं लगता था.

इस कानून में समय-समय पर कई संशोधन भी होते रहे. इस 'डेथ टैक्स' के 85% तक पहुंच जाने की वजह से इसकी आलोचना होने लगी. आगे चलकर 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने इसे समाप्त कर दिया. तब वित्तमंत्री थे VP सिंह.

क्यों खत्म किया गया कानून?

भारत में इस कानून को समाप्त करने की वजह साफ है. दरअसल, यह कानून आर्थिक असमानता को कम करने के मकसद से लाया गया था. लेकिन इससे न तो गैर-बराबरी कम हो पा रही थी, न ही इससे केंद्र को आय हो पा रही थी.

इसकी वसूली में कई तरह की कानूनी और प्रशासनिक जटिलताएं थीं. इस वजह से मामले का निपटारा होते-होते केंद्र पर बोझ बहुत बढ़ जाता, जबकि आय लागत से भी कम होती. रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1984-85 में एस्टेट ड्यूटी एक्ट के तहत केंद्र को केवल 20 करोड़ रुपये का राजस्व मिला, जबकि इसकी वसूली में आने वाली लागत कहीं ज्यादा थी. नतीजतन, इस कानून को समाप्त करना पड़ा.

क्या आज देश में ऐसे टैक्स हैं?

भारत में इन दिनों विरासत में मिली संपत्ति पर कोई टैक्स नहीं लगाया जाता है. चाहे उत्तराधिकारी को संपत्ति वसीयत के जरिए मिली हो या बिना वसीयत के. यहां टैक्स की देनदारी विरासत के समय नहीं बनती है, जैसे कि अमेरिका, ब्रिटेन या जापान में.

भारत में टैक्स तभी देना पड़ता है, जब विरासत में मिली संपत्ति बेची जाती है या इससे कोई और लाभ लिया जाता है.

यहां 'गिफ्ट टैक्स' की चर्चा जरूरी है. एक 'उपहार कर' पहले भी हुआ करता था. साल 2004 में इसे आयकर कानून के तहत नए रूप में लाया गया. इसके मुताबिक, 50,000 रुपये से ज्यादा कीमत के किसी भी उपहार पर टैक्स लगता है. यह उपहार चाहे नकद के रूप में हो, किसी वस्तु के रूप में या अचल संपत्ति के रूप में.

हालांकि, शादी-विवाह के दौरान वर-वधू को मिले उपहार, दान या विरासत को इस टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया है.

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