Women's Day 2023: महिलाओं को पेड पीरियड लीव देने में दिक्कत क्या है? क्या कोई कानून है

सवाल ये भी है कि क्या भारत जैसे देश में पीरियड लीव हकीकत का रूप सकती है? जहां यह नियम पहले से लागू है, वहां किस तरह की चुनौतियां देखी जा रही हैं?
BQP HindiBQ डेस्क
Last Updated On  07 March 2023, 8:42 AMPublished On   07 March 2023, 8:39 AM
Follow us on Google NewsBQP HindiBQP HindiBQP HindiBQP HindiBQP HindiBQP HindiBQP HindiBQP HindiBQP HindiBQP Hindi

हाल ही में कामकाजी महिलाओं और छात्राओं के लिए पीरियड लीव (Menstrual Leave) वाली एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया. तब से इस मसले पर नए सिरे से बहस छिड़ गई है.

अलग-अलग एंगल से विचार-मंथन हो रहा है कि अगर सचमुच इस बारे में कोई नियम-कानून बनता है, तो इससे महिलाओं को कितना नफा या नुकसान हो सकता है. सवाल ये भी है कि क्या भारत जैसे देश में पीरियड लीव हकीकत का रूप सकती है? जहां यह नियम पहले से लागू है, वहां किस तरह की चुनौतियां देखी जा रही हैं? इस आर्टिकल में ऐसे ही सवालों पर चर्चा की गई है.

अदालत ने क्या कहा?

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका  (PIL) दाखिल की गई थी. इसमें मांग की गई थी कि अदालत सभी राज्यों को निर्देश दे कि वे छात्राओं और कामकाजी महिलाओं की खातिर माहवारी के दौरान पेड लीव के लिए नियम बनाएं. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि यह पॉलिसी से जुड़ा मामला है, लिहाजा इस बारे में नीति बनाना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने टिप्पणी की कि ऐसी संभावना भी बन सकती है कि इस तरह की छुट्टी की बाध्यता होने पर लोग महिलाओं को नौकरी देने से ही परहेज करने लगें.

संसद की भूमिका

देश के स्तर पर पीरियड लीव की खातिर कानून लाए जाने के लिए प्रयास पहले भी हो चुके हैं. अरुणाचल प्रदेश से सांसद रहे निनॉन्ग एरिंग (Ninong Ering) ने साल 2018 में एक प्राइवेट मेंबरशिप बिल पेश किया था- मासिक धर्म लाभ विधेयक (Menstrual Benefits Bill), 2017. इसमें सरकारी और प्राइवेट, दोनों तरह के कर्मचारियों के लिए हर महीने दो दिनों के पीरियड लीव का प्रस्ताव है. इस विधेयक में माहवारी के दौरान वर्क प्लेस पर आराम के लिए बेहतर सुविधाएं मुहैया कराने की भी मांग है. हालांकि इस बिल को स्वीकार नहीं किया गया. कांग्रेस के मौजूदा विधायक एरिंग ने अरुणाचल प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र के पहले दिन, 2022 में फिर से विधेयक पेश किया था. लेकिन इस पर विचार नहीं किया गया.

किन-किन देशों में है कानून

पेड पीरियड लीव अभी दुनिया के गिने-चुने देशों में ही ठोस कानून का रूप ले सकी है. इस कड़ी में जो नया नाम जुड़ा है, वह है स्पेन. इसी साल 16 फरवरी को स्पेन पेड पीरियड लीव से जुड़ा कानून बनाने वाला पहला यूरोपीय देश बना. यह कानून कामकाजी महिलाओं को माहवारी के दौरान तीन दिनों की छुट्टी लेने का अधिकार देता है. इसे कुछ शर्तों के साथ पांच दिनों तक बढ़ाया जा सकता है. वैसे सबसे पहले 1922 में सोवियत संघ ने इस बारे में पहल की थी. 1947 में जापान ने मासिक धर्म की छुट्टी को औद्योगिक अधिकार के तौर पर पेश किया था. माने यह कानून कारखानों में काम करने वाली महिलाओं के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया था. इसी तरह की पॉलिसी ताइवान, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, जाम्बिया में भी बनाई गई.

बिहार ने दिखाई देश को राह

मेंस्ट्रुअल लीव के मसले पर देश की महिलाओं को राह दिखाने का क्रेडिट बिहार को जाता है. बिहार ने आज से तीन दशक पहले, 1992 में ही महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश की शुरुआत की थी. इसके तहत महिलाओं को हर महीने 2 दिन की पेड पीरियड लीव मिलती है. हालांकि इसके लिए बिहार की महिलाओं ने लंबा आंदोलन चलाया था, जिसके बाद यह कानून बन सका. बाद के दौर में देश में कुछ प्राइवेट कंपनियों ने अपने यहां इस पॉलिसी को अपनाया.

साल 2020 में फूड डिलीवरी कंपनी जोमैटो ने पीरियड लीव देने का ऐलान किया. अपने देश में अभी जो कंपनियां ऐसी सुविधा दे रही हैं, उनमें बायजू, स्विगी, मीडिया कंपनी मातृभूमि, वेट एंड ड्राई, मैगज्टर आदि शामिल हैं. केरल ने इसी साल इस दिशा में कदम उठाया है. केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 19 जनवरी को ऐलान किया कि राज्य सरकार उच्च शिक्षा विभाग के तहत राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में महिला स्टूडेंट के लिए माहवारी की छुट्टी देगी.

अब केरल की छात्राओं को माहवारी के दौरान 2 दिनों की छुट्टी मिलेगी. हालांकि वर्क फोर्स में शामिल महिलाओं को पेड पीरियड लीव की सुविधा वहां अभी भी नहीं है.

क्या छुट्टी से लॉन्ग टर्म में महिलाओं को नुकसान होगा?

सवाल है कि अगर पूरे देश में समान रूप से मेंस्ट्रुअल लीव का कानून आ जाए, तो किस-किस तरह की चुनौतियां सामने आ सकती हैं? क्या सुप्रीम कोर्ट की इस आशंका में वाकई दम है कि अगर महिलाओं के हित में यह छुट्टी बाध्यकारी कर दी जाएगी, तो मुमकिन है कि नियोक्ता उन्हें नौकरी देने से ही परहेज करने लगें? चूंकि अपने देश में बड़े पैमाने पर इस तरह का कोई कानून अस्तित्व में है ही नहीं, इसलिए न तो इस आशंका को सिरे से खारिज किया जा सकता है, न ही इस तर्क को स्वीकारा जा सकता है. जहां तक बिहार की बात है, वहां इस छुट्टी की सहूलियत सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिए ही है, प्राइवेट संस्थानों के लिए नहीं. फिर भी बिहार मॉडल से कुछ संकेत जरूर मिलते हैं.

बिहार में मेंस्ट्रुअल लीव को विशेष आकस्मिक अवकाश (Special Casual Leave) नाम दिया गया है. दो दिनों की इस छुट्टी का इस्तेमाल महिला कर्मचारी अपनी जरूरत या इच्छा के मुताबिक महीने में कभी भी कर सकती हैं. कोई महिला इस छुट्टी का इस्तेमाल हर महीने, समान अंतराल पर ही करे, यह न तो व्यावहारिक है, न ही उसके लिए बाध्यकारी. इस वजह से कई बार छुट्टी अप्रूव करने वाली अथॉरिटी को यह मालूम नहीं होता कि कौन-सी महिला किस दिन छुट्टी पर रहने वाली है. ऐसे भी मामले देखे गए हैं, जब किसी पर्व-त्योहार या विशेष अवसर पर एक ही संस्थान की कई महिला कर्मचारी एकसाथ विशेष आकस्मिक अवकाश (Menstrual Leave) पर चली गई हों. जाहिर है, ऐसी स्थिति पैदा होने पर ज्यादा जिम्मेदारी की मांग करने वाले पेशे के कामों पर बुरा असर पड़ेगा.

महिलाओं के हिस्से कम नौकरियां

इन बातों के बावजूद, जहां तक महिलाओं के हिस्से कम नौकरियां आने की आशंका की बात है, इसे तर्कसम्मत नहीं ठहराया जा सकता. वजह साफ है. आज महिलाएं कई सेक्टरों में पुरुषों के बराबर या पुरुषों से बेहतर काम कर रही हैं. सरकारी हो या प्राइवेट, हर जगह वे अपनी प्रतिभा, मेहनत और कार्यकुशलता के बूते नौकरी पा रही हैं. ऐसे में कोई नियोक्ता किसी योग्य महिला को सिर्फ इस आधार पर काम देने से कैसे इनकार कर सकता है कि इसे महीने में दो-तीन छुट्टियां ज्यादा देनी पड़ेंगी? हां, टोटल आउटपुट कैसा है, यह जरूर मायने रखता है.

आज के दौर में सूझ-बूझ से निर्णय करना और उसके मुताबिक तेज गति से काम पूरा करना मायने रखता है, न कि छुट्टियों की संख्या का दो-चार दिन कम या ज्यादा होना. कुल मिलाकर, अगर माहवारी की पीड़ा नेचुरल है, तो माहवारी की छुट्टी को भी महिलाओं का नैसर्गिक हक माना जा सकता है. अगर यह फिल्मी डायलॉग सच है कि 'मर्द को दर्द नहीं होता', तो मत हुआ करे. लेकिन आधी आबादी को दर्द होता है, तो इस दर्द की कारगर दवा उपलब्ध कराना एक लोक-कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी है. हमारी ओर से सभी को हैपी विमेंस डे!

BQP Hindi
लेखकBQ डेस्क
BQP Hindi
फॉलो करें