घर में बच्चे के आने की आहट से ही ज्यादातर माता-पिता उत्साहित हो जाते हैं. नई जिम्मेदारी मिलने की खुशी ही अलग होती है, लेकिन मन के किसी कोने में ये सवाल भी रहता है कि क्या परवरिश की ये जिम्मेदारी करियर की राह में रुकावट पैदा करेगी? क्या पैरेंटिंग का मतलब करियर के साथ समझौता करना है?
करियर से समझौता कौन करे?
नवजात या छोटे बच्चे की देखभाल के लिए अक्सर कामकाजी महिलाओं को ही करियर से समझौता करते देखा गया है.
पहली वजह- बच्चों को जन्म देने और स्तनपान कराने जैसी कुछ खास जरूरतें केवल मां ही पूरी कर सकती है.
दूसरी वजह- मैटरनिटी लीव, पैटरनिटी लीव से कई गुना ज्यादा होता है. इसलिए ज्यादातर मामलों में पुरुषों के सामने जॉब छोड़ने का विकल्प पैदा ही नहीं होता.
डे-केयर सेंटर बेहतर विकल्प
परवरिश के लिए फुलटाइम जॉब को अचानक पूरी तरह छोड़ देना, समझदारी भरा फैसला नहीं कहा जा सकता है. मैटरनिटी लीव खत्म हो जाने के बाद अगर जरूरी लगे, तो अपनी छुट्टियां और बढ़वा लें. अगर इन छुट्टियों की भी सीमा पार कर जाए, तो फिर बच्चे को डे-केयर सेंटर में रखकर ऑफिस जाया जा सकता है. ज्यादातर कामकाजी महिलाएं अब इसी विकल्प को तरजीह देती हैं. आखिर डे-केयर सेंटर इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किए जाते हैं.
जॉब छोड़ देने पर आपको आर्थिक तौर पर नुकसान होगा. साथ ही ये देखना भी जरूरी होगा कि कहीं डे-केयर सेंटर का खर्च आपकी सैलरी पर भारी तो नहीं पड़ने वाला? नफा-नुकसान देखकर ही कदम बढ़ाएं.
घर में भी संवर सकता है करियर
आज के दौर में घर-बैठे कमाई करने के कई विकल्प मौजूद हैं. कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण जो 'वर्क फ्रॉम होम' कल्चर विकसित हुआ, वह पूरी दुनिया को नई राह दिखाने वाला है. ऑनलाइन पढ़ने-पढ़ाने से लेकर घर में ही रहकर डिजिटल कंटेंट बनाना और उसे सोशल मीडिया के 'कमाऊ प्लेटफॉर्म' पर अपलोड करना लोगों को खूब भा रहा है. इससे पहचान भी मिल रही है और पैसा भी.
अपनी जॉब से मिलता-जुलता काम भी ऑनलाइन ढूंढ पाना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं. पार्ट-टाइम जॉब, कॉन्ट्रैक्ट जॉब या फ्रीलांसिंग बेहतर विकल्प हो सकते हैं. निराश होकर करियर को भूल जाने से पहले एक बार कोशिश करके जरूर देख लीजिए.
घर में रहकर भी हो सकता है तनाव
काम छोड़कर पूरे दिन अपने बच्चों के साथ घर पर रहना भी एक तरह से बड़ा चैलेंज हो सकता है. ऐसा मानसिक सेहत के लिहाज से कहा जा रहा है. अमेरिका में 2012 में किए गए एक पोल (Gallup Poll, 2012) में पाया गया कि घर में रहने वाली माताओं को नौकरी करने वालों की तुलना में कहीं ज्यादा चिंता, उदासी और अवसाद का अनुभव होता है.
तो आखिरी फैसला कैसे लें?
जिन महिलाओं ने अपनी शिक्षा और करियर बनाने में कई बरस और पैसे खर्च किए, उन्हें सोचना चाहिए कि क्या वे एक झटके में इसे भूल सकती हैं? ये अनुमान लगाएं कि करियर से जुड़े रहकर, अगले पांच साल बाद आप किस मुकाम पर हो सकती हैं.
मशहूर लेखक डेल कारनेगी ने कोई भी बड़ा निर्णय करने का एक बहुत अच्छा तरीका सुझाया है.
जब जीवन में किसी बड़े फैसले तक पहुंचना हो, तो तुरंत कागज-कलम उठा लीजिए. मन में किसी चीज के पक्ष और विपक्ष में जो भी विचार आते जाएं, उन्हें आमने-सामने नोट करते जाएं. अंत में देखें कि किस ओर का पलड़ा भारी है. यह तरीका पैरेंटिंग और करियर के बीच किसी एक को चुनते वक्त भी कारगर हो सकता है.डेल कारनेगी, लेखक
मन की फितरत समझिए
इंसान के पास जब जो चीज नहीं होती है, वही चीज उस वक्त उसे बहुत कीमती मालूम पड़ती है. मान लीजिए, जो लगातार पैसे बनाने में जुटा है, उसे छुट्टी दुनिया की सबसे प्यारी चीज लगती है. जिसके पास फुर्सत के पल ज्यादा हैं, उसे पैसे की चाह ज्यादा होती है.
अगर आपको फुलटाइम बच्चे की परवरिश करना ही दिल से पसंद है, तो आप निश्चिंत होकर करियर को ताक पर रख सकती हैं, लेकिन जॉब से जुड़े रहने से जो आर्थिक आजादी मिलेगी, जो मुकाम हासिल होगा, उसका मोल भी तौल लेना सही रहेगा. हर किसी के सामने हालात एक जैसे नहीं होते, इसलिए व्यावहारिक जीवन में कोई एक ही फॉर्मूला सब पर लागू नहीं हो सकता. यही वजह है कि आखिरी फैसला आपको ही लेना है.