Gujarat Elections: पाटीदार फैक्टर का कितनी सीटों पर असर, क्या है पार्टियों की रणनीति?

गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को मतदान है और नतीजे 8 दिसंबर को आने हैं. नतीजे चाहे जो आएं लेकिन ये तय है कि इस बार भी पाटीदारों की उसमें अहम भूमिका होगी.
BQP HindiBQ डेस्क
Last Updated On  24 November 2022, 4:09 PMPublished On   19 November 2022, 3:45 PM
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2022 के गुजराव चुनाव में जातीय वोटों की हलचल के लिहाज से क्या अलग है? इस सवाल का जवाब टटोलना हो तो 5 साल पहले 2017 के चुनावी नतीजों के पन्ने पलटने होंगे. गुजरात विधानसभा के कुल 182 विधायकों में से 44 विधायक पाटीदार समुदाय से आते हैं यानी 24.17%. और इससे पहले 2012 में क्या हाल था? उस साल 26.37% यानी 48 विधायक, पाटीदार समाज के बीच से चुनकर गुजरात विधानसभा में पहुंचे. 

पाटीदार का गणित क्या है? (Gujarat Patidar Factor)

बात सीधी है. गुजरात की कुल आबादी में पाटीदार करीब 22-23 फीसदी हैं. अगर कोई इन वोटों को साधने में कामयाब रहा तो समझिए बेड़ा पार. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि प्रदेश की 182 सीटों में से करीब 105 सीटों पर पाटीदार वोटरों का असर रहता है. जबकि इसमें से 48 सीटों के चुनावी नतीजों में उनकी सीधी भूमिका होती है. ऐसे में कोई भी पार्टी अपने उम्मीदवार तय करते समय और टिकटों का फैसला करते हुए पाटीदारों को नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं उठा सकती. 

अब तक BJP ने जिन उम्मीदवारों को 2022 के चुनावी समर में उतारने का एलान किया है, उनमें से 44 पाटीदार समाज से ही आते हैं. पारंपरिक तौर पर देखा जाए तो अब तक पाटीदारों के 70 से 75 फीसदी वोट BJP को मिलते रहे हैं. गुजरात चुनाव में पूरी धमक के साथ उतर रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की नजर से भी पाटीदार फैक्टर चूका नहीं है. अब सौराष्ट्र-कच्छ क्षेत्र को ही ले लीजिए. यहां की 54 सीटों पर पहले फेज में यानी 1 दिसंबर को वोटिंग है. आम आदमी पार्टी ने यहां 19 पाटीदारों को मैदान में उतारा है, वहीं भारतीय जनता पार्टी ने 18 और कांग्रेस ने 16 को. यानी, पार्टियों के बीच पाटीदारों की खींचतान का ट्रेलर दिख रहा है.

इतिहास क्या कहता है? 

गुजरात में अब तक हुए 17 मुख्यमंत्रियों में से 5 पाटीदार या कहें पटेल समुदाय से आते हैं. मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल भी इसी समाज से संबंध रखते हैं. हार्दिक पटेल आज BJP का हिस्सा है. उन्हें विरमगाम से टिकट दिया गया है. ये वही हार्दिक हैं जो 2015 में पाटीदार आंदोलन का मुखर चेहरा बनकर उभरे थे और बाद में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए कांग्रेस का हिस्सा भी बने.

लेउवा पटेल और कड़वा पटेल 
पाटीदार समाज को दो हिस्सों में देखा जा सकता है. लेउवा और कड़वा पटेल. सौराष्ट्र-कच्छ के जूनागढ़, अमरेली, कच्छ, भावनगर, राजकोट जैसे शहरों में लेउवा पटेलों का अच्छा असर है. वहीं, अहमदाबाद, विसनगर, मेहसाणा जैसे क्षेत्रों में कड़वा पटेलों का बोलबाला है. हालांकि, दोनों ही वर्गों के लोगों के लिए खेती और पशुपालन ही रोजगार का मुख्य साधन है.  

पाटीदार अनामत आंदोलन समिति का चेहरा रहे हार्दिक पटेल, कड़वा पटेल समुदाय से आते हैं. हालांकि, अब आंदोलन के ज्यादातर नेता किसी न किसी पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. इनमें हार्दिक के अलावा दूसरे बड़े नाम हैं- आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया, कांग्रेस के मौजूदा विधायक ललित वसोया और भारतीय जनता पार्टी के राघवजी पटेल शामिल हैं. 

गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को मतदान है और नतीजे 8 दिसंबर को आने हैं. नतीजे चाहे जो आएं लेकिन ये तय है कि इस बार भी पाटीदारों की उसमें अहम भूमिका होगी

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