एग्जिट पोल (Exit poll) में भी भारतीय जनता पार्टी (BJP) की ऐसी हार तो दूर-दूर तक नहीं थी. तो आखिर क्या हुआ की दक्षिण में BJP के लिए इकलौता द्वार भी बंद हो गया. क्या BJP कर्नाटक में मुद्दों को भुनाने में चूक गई या सत्ता विरुद्ध लहर बीजेपी पर भारी पड़ गई. इसमें भी सवाल ये कि क्या ये BJP की हार ज्यादा है या कांग्रेस की जीत. चलिए उन वजहों पर एक नजर डालते हैं जो BJP को हार के मुहाने तक लेकर गए
BJP के लिए जमीनी और कर्नाटक में मजबूत पकड़ रखने वाले नेताओं को चुनाव से दूर रखना भी भारी पड़ गया. बी एस येदियुरप्पा जैसे दिग्गज नेता का BJP सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाई, जो कि लिंगायत समाज में प्रतिष्ठित स्थान रखते हैं. येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से BJP में आंतरिक कलह की स्थिति बनी रही. कई गुट बन गए. चुनाव से पहले टिकट बंटवारे को लेकर भी कई नेता नाराज होकर बागी हो गए. पिछले महीने जगदीश शेट्टार जैसे नेताओं का जाना भी BJP को भारी पड़ गया, इसके अलावा BJP ने पूर्व उप मुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी को नजरअंदाज किया, इसलिए वो BJP को छोड़कर कांग्रेस चले गए. ये तीनों ही लिंगायत समाज के बड़े नेता है.
BJP में इस अंदरूनी कलह का नुकसान ये हुआ कि इस बार के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अपने कोर वोट को हासिल नहीं कर पाई. लिंगायत, वोक्कालिंगा, आदिवासियों को अपनी ओर जोड़ने में BJP नाकाम रही. इन जातीय समीकरणों पर बीजेपी की पकड़ ढीली होने का फायदा कांग्रेस को हुआ. OBC के साथ साथ कांग्रेस को लिंगायत के वोट भी मिले.
कांग्रेस ने BJP के खिलाफ 2022 से ही भ्रष्टाचार के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. '40% कमीशन वाली सरकार' और ‘PayCM’ जैसे कैम्पेन किए, जिसका खामियाजा सत्तारुढ़ पार्टी BJP को हुआ. रिश्वतखोरी के मामले में BJP विधायक मदल विरुपक्षप्पा और उनके बेटे की गिरफ्तारी के लिए लोकायुक्त जांच ने कांग्रेस के अभियान को मजबूत करने और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर BJP की छवि को चोट पहुंचाई.
कांग्रेस जहां BJP पर भ्रष्टाचार को लेकर हमले कर रही थी, BJP ने ध्रुवीकरण का दांव खेला, जो बुरी तरह फेल रहा. हिजाब, हलाला, अजान और अंत में बजरंग बली की एंट्री हो गई. कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का ऐलान किया तो BJP ने इसे बजरंग बली से जोड़कर हिंदुत्व कार्ड खेलने की कोशिश की, जो काम नहीं आई. मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा भी BJP के लिए काम नहीं कर पाया, BJP ने कर्नाटक में 4% मुस्लिम आरक्षण को खत्म कर दिया, लेकिन ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. ये फैसला भी BJP के लिए शायद नुकसान कर गया.
कर्नाटक में 1985 के बाद कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई पार्टी दोबारा सत्ता में लौटी हो. BJP 2019 में सत्ता में आई, जब कांग्रेस और JDS की मिली जुली सरकार गिर गई. हालांकि BJP चाहती थी कि 38 साल के इस इतिहास के ट्रेंड को बदला जाए, लेकिन एंटी इनकम्बेंसी की काट भी BJP नहीं खोज पाई.