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म्यूचुअल फंड्स में निवेश कब करें, इन बातों का रखना होगा ध्यान

निवेशक अक्सर म्यूचुअल फंड्स से जुड़ी अलग-अलग डिटेल्स पर ध्यान देते हैं और फिर किसी फंड में निवेश या उससे बाहर निकलने का फैसला लेते हैं.
NDTV Profit हिंदीअर्णव पंड्या
NDTV Profit हिंदी01:01 PM IST, 06 Apr 2024NDTV Profit हिंदी
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निवेशक अक्सर म्यूचुअल फंड्स (Mutual Funds) से जुड़ी अलग-अलग डिटेल्स पर ध्यान देते हैं और फिर किसी फंड में निवेश या उससे बाहर निकलने का फैसला लेते हैं. ये अहम है कि ऐसा कोई फैसला लेने से पहले अलग-अलग चीजों पर विचार कर लें क्योंकि इसका असर लंबे समय तक रह सकता है. अगर ये एक फैक्टर पर आधारित है तो ये प्रक्रिया के साथ आगे बढ़ने का सबसे अच्छा तरीका नहीं हो सकता है और आखिरी फैसले पर पहुंचने से पहले कई चीजों पर विचार कर लेना बेहतर है.

सिंगल फैक्टर

रेगुलेटरी या डिस्क्लॉजर के मोर्चे पर कुछ नए अपडेट से म्यूचुअल फंड्स से संबंधित कुछ डेटा से जुड़ा बज पैदा हो सकता है. इससे सिंगल फैक्टर का दबदबा हो सकता है. ऐसा एक उदाहरण है कि अगर म्यूचुअल फंड्स अपने मिडकैप और स्मॉल कैप फंड्स के लिए कोई स्ट्रेस टेस्ट करते हैं. पूरा ध्यान इस पर रहता था कि फंड पोर्टफोलियो के 25% और 50% को लिक्विडेट करने के लिए कितना समय लगेगा.

उसी समय जब इसकी डिटेल्स पर चर्चा हो रही है और एक्सपर्ट्स इस पर अपने विचार दे रहे हैं. तो निवेशकों का रिएक्शन ये होता है कि अपने फंड्स को देखें और फिर ये पता लगाएं कि वो किसी मापदंड पर कहां मौजूद है.

पॉज की जरूरत

ऐसे समय पर ये अहम है कि निवेशक एक कदम पीछे लें और रूककर ये सोचें कि उनकी ओर से लिए गए किसी कदम के क्या नतीजे होंगे. एक सिंगल फैक्टर को देखना कोई निवेश का फैसला लेने का आधार नहीं होना चाहिए जब तक पूरा निवेश जोखिम में न हो. ये इस बात को सुनिश्चित करने के लिए है कि निवेशक सिंगल फैक्टर से न प्रभावित हो और ये सोचे कि सबकुछ या कुछ भी सही नहीं है क्योंकि ये सिर्फ निवेश की प्रक्रिया का एक नजरिया है.

निवेशक के लिए अहम चीज ये है कि वो कोई कदम उठाने से पहले रूक जाएं और कुछ दूसरे मापदंडों पर विचार करें. उदाहरण के लिए एक फंड में पोर्टफोलियो के 50% को लिक्विडेट करने के लिए कुछ ज्यादा दिन हो सकते हैं. लेकिन उसके साथ पोर्टफोलियो के साइज और फंड मैनेजमेंट स्ट्रैटजी को भी देखना होगा.

कई फैक्टर्स

निवेशक को हमेशा निवेश या एग्जिट करने का फैसला लेने से पहले कई फैक्टर्स को देखना चाहिए. इनमें फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड और फंड साइज और स्ट्रैटजी शामिल होती हैं. फंड की अच्छी या बुरी परफॉर्मेंस से निवेशक को संकेत मिलता है कि फंड अलग-अलग स्थितियों में कैसा रहेगा. जब इन सभी को साथ में देखेंगे तभी निवेशक पोर्टफोलियो के लिए किसी फंड के सही होने के बारे में सही फैसला ले सकता है.

एक प्लान पर बने रहें

किसी मुश्किल से बचने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि निवेशक एक प्लान से जुड़ा रहे और उसे किसी नई डेवलपमेंट के साथ न बदले. आपके आसपास हमेशा बहुत शोर और उत्सुकता रहेगी और ये बढ़ती जाएगी. लेकिन निवेशक के लिए अपने प्लान को छोड़ देने का आधार नहीं बनना चाहिए.

इसकी एक वजह होती है कि निवेशक ने क्यों अपने पोर्टफोलियो में फंड्स को चुना है और जब तक उनकी जरूरतों के मुताबिक ये सही हैं तो उससे जुड़े रहें. किसी जोखिम को लेकर अचानक घबरा जाने से बचना चाहिए. लंबी अवधि के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ये सबसे अहम है.

अर्णव पंड्या

(लेखक Moneyeduschool के फाउंडर हैं)

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