क्या Insurance Claim करने की कोई समय सीमा है?

इंश्योरेंस क्लेम मिलेगा या नहीं, क्या कोई एक छोटी सी गलती से क्लेम मिलने में दिक्कत आ सकती है. इंश्योरेंस लेते वक्त आपको किन बातों का ख्याल रखना चाहिए.
BQP HindiBQ डेस्क
Last Updated On  02 December 2022, 5:05 AMPublished On   19 November 2022, 12:07 PM
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क्या जरूरत के वक्त इंश्योरेंस का क्लेम मिल पाता है? इंश्योरेंस क्लेम करने की क्या कोई निश्चित समय सीमा होती है? इंश्योरेंस लेने के बाद गाहे-बगाहे ये सवाल मन में उठते ही हैं.

लाइफ इंश्योरेंस (Life Insurance) यानी जीवन बीमा

जीवन बीमा पॉलिसी में दावा कभी भी किया जा सकता है. इसके लिए न कोई निश्चित समय होता है, न ही कोई समय-सीमा. बस, पॉलिसी धारक की मौत के समय बीमा पॉलिसी एक्टिव होनी चाहिए. LIC के जोनल अधिकारी रहे योगेंद्र सिंह बताते हैं कि आमतौर पर जीवन बीमा पॉलिसी में नॉमिनी कभी भी क्लेम कर सकता है. फिर भी पॉलिसी खरीदने के वक्त क्लेम से जुड़ी सारी शर्तें समझ लेनी चाहिए, ताकि बाद में जाकर कोई समस्या ना आए.

हेल्थ इंश्योरेंस (Health Insurance)

हेल्थ इंश्योरेंस में क्लेम दो तरीके से लिए जाते हैं. एक कैशलेस होता है और दूसरा री-इंबर्समेंट. कैशलेस बीमा पॉलिसी होने पर कंपनी का जिस अस्पताल के साथ करार होता है, वहां बगैर अपनी जेब से पैसे दिए इलाज मिल जाता है. हालांकि ये ध्यान रखें कि :

  • अस्पताल में भर्ती होने से 48 या 72 घंटे पहले बीमा कंपनी को सूचित करना जरूरी है.

  • अगर मामला इमर्जेंसी का हो, तो यह समय-सीमा 24 घंटे बाद तक हो सकती है.

बीमा कंपनी के पैनल से बाहर के अस्पताल में भर्ती होने पर पॉलिसीधारक को री-इंबर्समेंट के लिए दावा करना होता है जिसके लिए भी शर्तों का पालन जरूरी है :

  • दावा अस्पताल से छुट्टी के एक महीने के भीतर होना चाहिए.

  • अस्पताल में भर्ती होने के तुरंत बात इसकी सूचना बीमा कंपनी को दी जानी चाहिए.

  • दावा करने के लिए सारे मूल दस्तावेज, डिस्चार्ज पेपर, रिपोर्ट्स वगैरह जमा कराने होते हैं.

कुछ खास मामलों में बीमा कंपनियां ग्राहकों को क्लेम करने के लिए 90 दिनों तक की छूट देती हैं.

मोटर बीमा क्लेम (Motor Insurance Claim)

मोटर बीमा धारकों के लिए यह जानना जरूरी है कि कब और किन परिस्थितियों में दावे किए जाने चाहिए. बीमा धारक की गाड़ी को नुकसान पहुंचता है या चोरी होती है तो क्लेम इंटिमेशन तुरंत देना पड़ता है. इस दौरान बताना होता है कि किस जगह पर घटना घटी है, वहां से सर्विस सेंटर कितना दूर है, जो सर्विस सेंटर है वहां कैशलेस सुविधा के लिए बीमा कंपनी का करार है या नहीं.

सर्विस सेंटर, पैनल में हो तो कैशलेस (Cashless) सुविधा

अगर सर्विस सेंटर पैनल में होता है तो गाड़ी के दुर्घटनाग्रस्त होने पर कैशलेस की सुविधा मिल जाती है. मगर, इससे पहले सर्वेयर अपनी रिपोर्ट देता है. वो कस्टमर के लिए सर्विस सेंटर को सुझाव और निर्देश भी देता है और उस हिसाब से सर्विस सेंटर काम करता है.

जब सर्विस सेंटर पैनल पर नहीं होता है तो कस्टमर अपनी गाड़ी खुद ठीक करा सकता है. इसके बदले उसे भुगतान कर दिया जाता है. मगर, कस्टमर को सर्वेयर के बताए अनुसार ही काम कराना होता है. ऐसा नहीं करने पर रकम के भुगतान में दिक्कत आ सकती है

पुरानी गाड़ियों में वैल्यू डेप्रिसिएशन फॉर्मूला (Value Depreciation Formula)

गाड़ी अगर नई होती है तो दिक्कत नहीं होती. खर्च होने वाली रकम का 95% हिस्सा तक मिल जाता है. वहीं गाड़ी पुरानी होने पर वैल्यू डिप्रेशिएशन का फॉर्मूला लगता है. पुर्जों की वास्तविक कीमत डिप्रेशिएशन के हिसाब से तय की जाती है.

फायदेमंद है जीरो डेप पॉलिसी (Zero Dep Policy )

हो सकता है कि डेप्रिशिएशन के कारण कस्टमर को जरूरत के वक्त उम्मीद से कम रकम मिले. इससे बचने के लिए कस्टमर जीरो डेप पॉलिसी का विकल्प चुन सकते हैं. इसमें पॉलिसी का प्रीमियम थोड़ा ज्यादा रहता है, लेकिन इस पॉलिसी में ज्यादातर बदले जाने वाले पार्ट्स के लिए क्लेम मिल जाता है.

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