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आपकी इनकम से अब नहीं कटेगा बेवजह का TDS, ऐसे करें प्लानिंग

टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (TDS) यानी वो टैक्स, जो आपकी आय से काटा जाता है. इससे बचने के कई तरीके हैं.
BQP Hindiअर्णव पंड्या
BQP Hindi10:13 AM IST, 16 Sep 2023BQP Hindi
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टैक्सपेयर्स की आमतौर पर एक बड़ी परेशानी आती है, जब बहुत सारे निवेश में उनका ढेर सारा TDS कट जाता है. टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स (TDS) यानी वो टैक्स, जो आपकी आय से काटा जाता है. ब्याज और डिविडेंड मिलने से आपकी आय जब एक तय सीमा से अधिक हो जाती है, तो ऐसे मामले में तो TDS का खतरा और बढ़ जाता है. ये उन लोगों के लिए चिंता का सबब बन सकता है, जिनकी आय टैक्सेबल इनकम से कम है, वो लोग इनकम टैक्स विभाग से रिफंड के लिए फॉर्म भर सकते हैं.

15G या 15H फॉर्म में TDS को नहीं कटने का विकल्प मौजूद होता है. आइए, इसकी प्रक्रिया को विस्तार से जानते हैं.

तय सीमा और TDS

निश्चित स्रोतों से होने वाली आय की एक तय सीमा (Threshold Limit) के बाद TDS लगता है. इनकम के अलग-अलग प्रकार पर TDS भी अलग होता है. इसके साथ ही ये TDS इस बात पर भी निर्भर करता है कि टैक्सपेयर टैक्स देने के कौन से ब्रैकेट में आता है.

फर्ज करिए कि डिविडेंड से होने वाली 5,000 रुपये की आय से ज्यादा होने पर आपको टैक्स देना होगा. वहीं, अगर बैंक से आपको ब्याज मिलता है, तो उसकी लिमिट 40,000 रुपये तक होती है. सीनियर सिटिजन के लिए ये सीमा 50,000 रुपये की होती है. ये तय सीमा बहुत जरूरी है क्योंकि इस लिमिट को क्रॉस करने पर ही TDS कटेगा और ये सब पर लागू होगा.

नॉन-टैक्सेबल इनकम

बहुत से ऐसे लोग होंगे, जिनकी आय नॉन-टैक्सेबल इनकम के ब्रैकेट में आती है. इनमें से अधिकतर लोग सीनियर सिटिजन हैं, जिनके पास उनके नाम से कोई आय नहीं है, लेकिन उन्होंने अलग-अलग जगहों पर अपना निवेश कर रखा है. गृहिणियां भी इस कैटेगरी में आती हैं, जिनकी कोई रेगुलर आय नहीं है, लेकिन उनके पास कुछ पैसा जमा है या उन्होंने कहीं इन्वेस्ट कर रखा है. बहुत से लोग अस्थायी रूप से इस कैटेगरी में आते हैं, जो कुछ वक्त के लिए काम से ब्रेक लेना चाहते हैं.

इन सभी के साथ एक दिक्कत तो ये है कि अगर उनका TDS कटता है, तो ये उनको तब वापस मिलता है, जब वित्त वर्ष पूरा हो जाता है, रिटर्न भर जाता है और प्रोसेस हो जाता है. ये प्रक्रिया बहुत लंबी होती है, इसलिए ध्यान रखना चाहिए कि TDS की पूरी प्रक्रिया से होकर न गुजरना पड़े.

फॉर्म 15G/15H

सबसे पहले तो ये जानना जरूरी है कि किस कैटेगरी के लोगों को कौन सा फॉर्म भरना चाहिए. ऐसा सुनिश्चित करने के लिए कि कोई TDS नहीं है, तो वो फॉर्म 15G और 15H हैं. ये फॉर्म सुनिश्चित करते हैं कि अगर किसी टैक्सपेयर की आय टैक्सेबल नहीं है, तो उसको कोई TDS नहीं भरना पड़ेगा.

60 साल से कम उम्र वालों के लिए फॉर्म 15G उपलब्ध है. इसके साथ ही, 60 या उससे ज्यादा उम्र वाले सीनियर सिटिजंस के लिए फॉर्म 15H मौजूद है.

एक बात ध्यान देने वाली है कि ये फॉर्म उसको सबमिट किया जाए, जो टैक्स काटने वाला है. इसके साथ ही इस फॉर्म का इस्तेमाल तब ही किया जाए, जब उस वित्त वर्ष के लिए आय टैक्सेबल इनकम की लिमिट से कम होनी चाहिए और इस पर जीरो टैक्स होना चाहिए. अगर आय पर छोटे से छोटा टैक्स भी लग रहा है, तो आप ये फॉर्म नहीं भर सकते.

विशेष जानकारी

a. कुछ जानकारियां, जो इस फॉर्म के सबमिट किए जाने के वक्त जाननी चाहिए. ये फॉर्म हर साल जमा करना होता है, इसलिए अगर ये पिछले साल भरा गया था, तो ये इस वित्त वर्ष के लिए वैध नहीं होगा. इसलिए, हर वित्त वर्ष के लिए नया फॉर्म जमा करना होगा.

b. फिक्स्ड डिपॉजिट के लिए, ये फॉर्म उस ब्रांच में जमा करना होगा, जहां पर आपका डिपॉजिट जमा है. डिविडेंड के मामले में, ये फॉर्म रजिस्ट्रार के पास जमा किया जाएगा और अधिकांश केसेज में, डिविडेंड दिए जाने से पहले, रजिस्ट्रार शेयरधारकों को ई-मेल भेजेगा, जिसमें इस फॉर्म को भेजने से जुड़ी सारी जानकारी उपलब्ध होगी.

c. कुछ मामलों में, ये फॉर्म ऑनलाइन भी भेजा जा सकता है. नहीं तो, आप खुद से इस फॉर्म को जमा करा सकते हैं. इस फॉर्म में परमानेंट अकाउंट नंबर (PAN) की जानकारी देनी होती है और अपनी आय, अपने निवेश की जानकारी भी इस फॉर्म में भरनी होती है. इस फॉर्म को सही तरह से भरना इस प्रक्रिया को पूरा करने का अहम हिस्सा है.

अर्णव पंड्या

(लेखक Moneyeduschool के फाउंडर हैं)

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