पैसा पहले दो, सामान बाद में मिलेगा. यही है ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम. कैश ऑन डिलिवरी का भी ऑप्शन होता है. इसमें सामान लेते समय कैश देना होता है. पेमेंट करते ही मामला खरीदार के हाथ से निकल जाता है. ऑर्डर के साथ ही वह सामान की डिलिवरी का इंतजार करता है. सामान मिलते ही समस्या भी साथ ही मिल जाती है. यह ऑनलाइन कारोबार का सबसे कड़वा सच है.
11 साल की प्रत्युषा को बैंगलुरु से उसकी मौसी का दिया हुआ गिफ्ट बर्थडे के अगले दिन दिल्ली में मिला. बर्थ डे बच्ची निराश हुई तो मौसी हताश- कि आखिर तय समय पर डिलीवरी क्यों नहीं हुई? आत्मग्लानि और अपराध बोध में मौसी भी लाचार रही और बच्ची को लगा मानो उसे ठग लिया गया हो.
बहरहाल, प्रत्युषा ने बर्थडे गिफ्ट खोला. नहीं, ये वो नहीं है जो मौसी ने फोटो खींचकर भेजा था. बुझे मन से टॉप पहनकर देखा तो साइज भी छोटा था. अब क्या करें?
मौसी ने कहा कि कोई बात नहीं इसे बदल देते हैं. अगले दिन आइटम कलेक्ट करने लड़का आया. पैकेट देख-परख कर उसने बताया- इस प्रॉडक्ट को हम नहीं ले सकते क्योंकि इसमें टैग नहीं है.
क्या! इसमें बायर का क्या कसूर? बहरहाल, करना क्या होगा?- पूछने पर उसने बताया कि ऐसा इन दिनों बहुत हो रहा है. टैगिंग के बगैर ही प्रॉडक्ट डिलीवर हो रहे हैं. इसलिए रिटर्न में दिक्कत आ रही है. आप ऑनलाइन कस्टमर केयर पर बात कीजिए.
मौसी को खबर की गयी. बातचीत का नतीजा नहीं निकला. दो दिन, चार दिन बीतते-बीतते 10 दिन भी बीत गये. नियमानुसार, अब रिटर्न का वक्त भी खत्म हो गया.
हार मान गयी तो मौसी कैसी? मौसी को आइडिया आया. उसने वही प्रॉडक्ट एक बार फिर ऑर्डर कर मगाया. इस बार यह प्रत्युषा को पसंद था.
मगर, तुरंत मौसी का फोन आ गया. इस प्रॉडक्ट को रिटर्न कर रही हूं. कलेक्ट करने लड़का पहुंच रहा है. तुम पुराने वाले प्रॉडक्ट को इसी पैक में रिटर्न कर दो. थोड़ी देर में प्रत्युषा को भी बात समझ में आ गयी. प्रॉडक्ट वापस भी हो गया और नया प्रॉडक्ट भी मिल गया.
लेकिन, यह आइडिया हमेशा काम करे- ऐसा जरूरी नहीं है. उल्टा भी पड़ सकता है. दूसरे प्रॉडक्ट में भी टैगिंग नहीं हो सकती थी. तब डबल नुकसान हो जाता.
ऑनलाइन बायर को कई तरह की समस्याएं झेलनी पड़ रही है. मसलन, ऑनलाइन पेमेंट करने के बावजूद सामान समय पर नहीं मिलता. क्वालिटी खराब मिलती है. कई बार सामान कुछ और मिल जाता है. कभी रंग पसंद नहीं आता, कभी साइज छोटा-बड़ा हो जाता है.
भारत में 75 अरब डॉलर के आकार वाला ऑनलाइन कारोबार इन दिनों खरीदारों को परेशान कर रहा है. रिटर्न की समस्या बड़ी हो चुकी है. ऑनलाइन खरीदार घर बैठे मुसीबत बुलाने को मजबूर हैं. पावर रिव्यूज़ कन्ज्यूमर सर्वे 2021 की मानें तो 70% प्रोडक्ट फिट नहीं होते, इसलिए रिटर्न होते हैं. इसके अलावा प्रोडक्ट का टूटा-फूटा होना भी दूसरा सबसे बड़ा कारण होता है.
ऑनलाइन शॉपिंग में 79% खरीदार को फ्री रिटर्न की सुविधा चाहिए, वहीं फास्ट शिपिंग चाहने वाले भी 74% हैं. ऊंची आमदनी वाले लोगों को फ्री रिटर्न अधिक पसंद है. इसे टेबल से समझें-
रिटर्न समस्या नहीं सुविधा है. मगर, तब जब बेचने वाले को ऐसा महसूस हो. 88% उपभोक्ता ऐसे हैं जिन्होंने कभी न कभी प्रोडक्ट जरूर रिटर्न किया है. इसका मतलब यह है कि ऑनलाइन बाजार की खासियत है रिटर्न. इसे फायदे के रूप में देखने से समस्या बढ़ रही है.
रिटर्न से जुड़ा होता है रिफंड और रिप्लेसमेंट. अक्सर ये बातें सामान खरीदते वक्त स्पष्ट कर दी जाती हैं. खरीदार की किस्मत ठीक हो तो सामान रिप्लेस हो जाता है या फिर रिफंड मिल जाता है. मगर, अब दोनों ही परिस्थितियां मुश्किल हो चली हैं. रिप्लेसमेंट भी सुख साबित नहीं हो रहे हैं और रिफंड मिलने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
खरीदार के लिए 1986 का कंज्यूमर प्रोटक्शन एक्ट है. 20 लाख की कीमत तक का मामला जिला कंज्यूमर फोरम में और इससे ज्यादा या एक करोड़ से कम तक का मामला राज्य कंज्यूमर कमीशन के पास दर्ज कराया जाता है. एक करोड़ से अधिक कीमत का सामान हो तो सीधे नेशनल कंज्यूमर कमीशन में अपील की जा सकती है. टोल फ्री नंबर 14404 या फिर 1800-11-4000 पर फोन करके भी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है. 8130009809 नंबर पर SMS भेजकर भी शिकायत की जा सकती है. सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी यानी CCPA को ccpa@nic.in.पते पर ई-मेल भेजा जा सकता है.