कुछ दिन पहले तक हवाई यात्रियों के रिकॉर्ड आंकड़ों से गदगद हो रही एविएशन इंडस्ट्री के लिए खस्ताहाल गो फर्स्ट की 'कैश' लैंडिंग ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. पहला सवाल तो यही है कि क्या ये एविएशन इंडस्ट्री के लिए किसी खतरे की घंटी है या फिर सिर्फ एक एयरलाइन के मिसमैनेजमेंट का मामला जो अपनी वित्तीय देनदारियों और ऑपरेशंस को संभालने में चूक गई.
खैर- गो फर्स्ट न तो पहली एयरलाइन है और न आखिरी होगी, जो पैसों की किल्लत के चलते अर्श से सीधा फर्श पर आ गई. अब दूसरा सवाल ये है कि गो फर्स्ट का भविष्य क्या होगा, क्या वो दोबारा उड़ सकेगी या फिर वो भी एविएशन के उस काले इतिहास का हिस्सा बन जाएगी, जिसमें पहले ही किंगफिशर और जेट एयरवेज जैसी एयरलाइंस समा चुकी हैं, जिन्होंने कभी आसमान पर राज किया था, वही आसमान उनसे छिन गया.
गो फर्स्ट का भविष्य क्या होगा, अगर इतिहास पर जाएंगे तो जवाब परेशानी बढ़ाने वाले हैं. क्योंकि कोई भी एयरलाइन जो इस तरह की वित्तीय किल्लत से जूझी है, उसके लिए उबर पाने के मौके बहुत कम होते हैं.
एक नजर डालते हैं उन एयरलाइंस पर, जिनका आगाज जितना बुलंद था, अंजाम उतना ही बुरा.
एविएशन में डी-रेगुलेशन के बाद 90 के दशक में ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस और दमानिया एयरवेज बड़े जोर शोर से एविएशन इंडस्ट्री में कदम रखती हैं, मकसद, एयर इंडिया के लिए चुनौती खड़ी करना, जो उस वक्त पूरी इंडस्ट्री पर दबदबा रखती थी. मगर चुनौती तो दूर, दोनों एयरलाइंस लॉन्च के बाद महज चार से पांच साल में ही अपना बोरिया बिस्तर बंद करके गायब हो गईं.
ईस्ट-वेस्ट एयरलाइंस लगातार बढ़ते घाटे और उसके मालिक तखियाउद्दीन वाहिद की हत्या के बाद बंद कर दी गई थी. जबकि, दमानिया एयरवेज को चेन्नई में आधारित NEPC एयरलाइंस को बेच दिया गया था. ये एयरलाइंस भी दमानिया को खरीदने के बाद बंद हो गई थी.
दमानिया एयरवेज जब लॉन्च हुई थी, तो मानो हवा में किसी ने फाइव स्टार होटल खोल दिया हो, ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए घरेलू फ्लाइट्स में भी शराब और तमाम लग्जरी सर्विसेज दी जाती थीं.
King Of Good Time के नाम से मशहूर विजय माल्या ने 2003 में किंगफिशर की शुरुआत की थी, लॉन्च के कुछ समय बाद ही किंगफिशर देश की पांचवीं सबसे बड़ी एयरलाइन बन गई, जो देश और विदेश दोनों ही उड़ाने मुहैया कराती थी.
ग्लैमर और चकाचौंध वाली एयरलाइन धीरे धीरे मिसमैनेजमेंट का शिकार होती चली गई, फाइनेंशियल प्लानिंग, एक्सपैंशन में गलतियां, बेलगाम खर्चों को रोकने में माल्या की एयरलाइन नाकाम हो गई, नतीजा एयरलाइन के ऊपर 7000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा का कर्ज चढ़ गया.
एविएशन रेगुलेटर DGCA ने अक्टूबर 2012 में किंगफिशर एयरलाइन का फ्लाइंग लाइसेंस कैंसिल कर दिया, क्योंकि किंगफिशर अपने रिवाइवल के लिए कोई कारगर योजना पेश नहीं कर सकी, यहां तक कि एयरलाइन अपने कर्मचारियों को उनकी बकाया सैलरी का भुगतान तक नहीं कर सकी. बस फिर क्या था, किंगफिशर ने आसमान छोड़ दिया और माल्या ने देश.
जेट एयरवेज की बर्बादी की कहानी भी कुछ अलग नहीं है. किंगफिशर से गला काट कंपटीशन और आगे निकलने की होड़ में जेट एयरवेज ने एयर सहारा को खरीदा. लेकिन ये डील ही जेट के लिए भारी पड़ गई.
साल 2006 में 500 मिलियन डॉलर में हुई इस डील को तमाम एक्सपर्ट्स 'महंगा सौदा' बताते रहे. एयर एशिया को रीब्रैंड करके JetLite किया गया, लेकिन जिन परों पर बैठकर जेट एयरवेज को परवाज करना था, उसने ही जेट के पर कतर दिए. ये सौदा फला नहीं और जेट एयरवेज के पहिए वित्तीय चक्रवात में फंसते चले गए.
2005-06 के दौरान आईं लो-कॉस्ट एयरलाइंस IndiGo, SpiceJet और GoAir ने जेट एयरवेज के हिस्से का आसमान छीनना शुरू कर दिया, जेट इस बात को समझ ही नहीं पाया कि एविएशन इंडस्ट्री अब इन लो कॉस्ट एयरलाइंस की वजह से प्राइस सेंसिटिव हो चुकी है. लोग सस्ते में हवाई यात्राएं कर रहे हैं. जेट पिछड़ता चला गया और अप्रैल 2019 आते आते कंगाली की उस हालत तक पहुंच गया कि दोबारा फिर कभी न उड़ सका.
कैप्टन गोपीनाथ, एक रिटायर्ड इंडियन आर्मी ऑफिसर, जिन्होंने 1997 में डेक्कन एविएशन की शुरुआत की, ये भारत की पहली प्राइवेट हेलीकॉप्टर चार्टर सर्विस थी. साल 2003 में कैप्टन ने एयर डेक्कन की शुरुआत की, हैदराबाद और विजयवाड़ा के बीच पहली उड़ान सफल रही. इसके बाद एयर डेक्कन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
एयर डेक्कन ने सिर्फ 1 रुपये में फ्लाइट टिकट बेचे, जिसने हवाई यात्रियों को आकर्षित किया. एयर डेक्कन ने कुछ प्राइम रूट्स पर 500 रुपये में भी टिकट बेचे, जिनके बीच किराया 7000 रुपये तक हुआ करता था.
ये उस समय की एयर इंडिया और जेट एयरवेज के लिए एक बड़ी चुनौती बन रहा था. एयर डेक्कन टियर-1 और टियर-2 शहरों में उड़ानों को ऑपरेट कर रहा था, साल 2007 आते आते एयर डेक्कन के पास 45 से ज्यादा विमान और करीब 400 फ्लाइट्स थी, जो 67 एयरपोर्ट्स पर ऑपरेट कर रहीं थी.
लेकिन तभी दूसरी लो-कॉस्ट एयरलाइंस भी आसमान पर मंडराने लगीं और एयर डेक्कन के लिए मुश्किलों का दौर शुरू हो गया. 2008 में किंगफिशर ने एयर डेक्कन का अधिग्रहण कर लिया.
इस फेहरिस्त में और भी कई एयरलाइंस हैं, जिन्होंने आसमान में अपनी जगह बनाने की कोशिश तो जरूर की, लेकिन हवा में ज्यादा देर तक टिक नहीं सकीं.