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Adani-Hindenburg Case: एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट में SEBI का जवाब

मार्केट रेगुलेटर ने साफ किया कि एक्सपर्ट कमिटी के सामने जो कुछ भी पेश किया गया वो पहली नजर में उस वक्त तक SEBIके पास उपलब्ध तथ्यों पर आधारित था.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी07:31 PM IST, 10 Jul 2023NDTV Profit हिंदी
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मार्केट रेगुलेटर SEBI ने अदाणी हिंडनबर्ग मामले (Adani Hindenburg case) में एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट पर अपना जवाब सुप्रीम कोर्ट में दे दिया है. SEBI ने कहा है कि एक्सपर्ट कमिटी ने रिपोर्ट में तथ्यों और कानून की कुछ व्याख्याएं व्यक्त की हैं जिसका असर चल रही जांच पर पड़ता है.

SEBI ने एफिडेविट में क्या कहा?

मार्केट रेगुलेटर ने साफ किया कि एक्सपर्ट कमिटी के सामने जो कुछ भी पेश किया गया वो पहली नजर में उस वक्त तक SEBI के पास उपलब्ध तथ्यों पर आधारित था, न कि जांच पूरी होने के बाद पाए गए तथ्यों पर कानून को लागू करने के आधार पर.

आपको याद दिला दें कि कमिटी ने बताया था कि SEBI, RPT संरचना नियमों का परीक्षण कर सकता है. एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट में मार्केट रेगुलेटर के लिए एक उचित एनफोर्समेंट पॉलिसी को विकसित करने और एक क्राइटेरिया तय करने की जरूरत पर जोर दिया गया था. जिसके आधार पर SEBI चुन सकता है कि कौन सी कार्यवाही की जाए.

इस पर, मार्केट रेगुलेटर SEBI ने जवाब दिया है कि उसके पास एक एनफोर्समेंट मैनुअल है जो उसके द्वारा की जाने वाली सभी कार्यवाहियों पर लागू होता है. इसमें आगे कहा गया है कि मौजूदा रेगुलेटरी रिसोर्सेज के सबसे बेहतर इस्तेमाल को सुनिश्चित करने के लिए एनफोर्समेंट मैनुअल कई मौकों पर संशोधित किया गया है. कमिटी की रिपोर्ट जांच शुरू करने, उसके निपटान के लिए प्रतिस्पर्धा की निर्धारित समयसीमा की जरूरतों पर भी रोशनी डालती है

एक्सपर्ट कमिटी के सुझाव, SEBI का जवाब

कमिटी ने कहा था कि एक बार SEBI ने नियम या रेगुलेशन बनाते समय एक दृष्टिकोण अपना लिया है, तो वो अंतर्निहित दृष्टिकोण को संभावित रूप से नहीं बदल सकता है और फिर पहले दृष्टिकोण के आधार पर पिछले लेनदेन पर सवाल नहीं उठा सकता है.

इस पर SEBI ने जवाब दिया कि उसके प्रतिभूति कानून, नियमों को दरकिनार करने के लिए बनाई गई 'योजनाओं' और 'बनावटीपन' पर रोक लगाते हैं. एक बार जब परिभाषा को एक धोखाधड़ी को संबोधित करने के लिए रिफाइन किया जाता है, तो उस स्थिति में 'योजनाओं' और 'बनावटीपन' को छोड़कर प्रावधान को लागू करना और उल्लंघन पर कार्रवाई करना कानूनी रूप से उचित है.

इसके अलावा SEBI ने कमिटी के अपारदर्शी संरचनाओं की पहचान को लेकर दिए गए सुझाव पर भी अपनी जवाब दिया है. एक्सपर्ट कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि SEBI को आर्थिक हितधारकों की पहचान करना मुश्किल हो रहा है, इसकी एक छोटी सी वजह ये भी है कि रेगुलेटर की ओर से 'अपारदर्शी संरचनाओं' पर 2014 के नियमों को खत्म कर दिया गया था.

इन सबके अलावा SEBI ने न्यायिक अनुशासन, प्रवर्तन और निपटान से संबंधित सुझावों पर अपनी प्रतिक्रियाएं भी दी हैं.

  • रेगुलेटरी कार्रवाई हमेशा मौजूदा सिक्योरिटीज कानूनों के आधार पर होती है

  • नए तथ्य जिनकी जानकारी पहले नहीं थी, उन पर भी मौजूदा फ्रेमवर्क के तहत ही कार्रवाई होती है

  • पूर्णकालिक सदस्य (WTM) और निर्णायक अधिकारी (AO) इंडिपेंडेंट अथॉरिटीज हैं. आमतौर पर एक WTM/AO के फैसलों का अनुसरण बाकी लोग करते हैं. सिर्फ उन मामलों को छोड़कर जहां बाद वाली अथॉरिटी पहले द्वारा तय किए गए अनुपात से सहमत नहीं है, जहां इसका कोई पहले का मूल्य नहीं है.

  • प्रतिभूति कानूनों के उल्लंघन के लिए तुरंत कार्रवाई की जरूरत होती है, ताकि मार्केट पर पड़ने वाले निगेटिव असर को रोका जा सके. अगर SEBI को बाद के मामलों में हमेशा SAT की ओर से तय कानून का पालन करने के लिए कहा जाता है, और शीर्ष अदालत बाद में SAT के आदेश को पलट देती है, तो रेगुलेटर उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ देर से कार्रवाई नहीं कर पाएगा. अगर SEBI को हमेशा SAT की ओर से तय अनुपात का पालन करने के लिए कहा जाता है तो गंभीर अन्याय हो सकता है.

  • सिक्योरिटीज मार्केट में मामलों की प्रकृति, दायरा और जटिलता अलग-अलग होती है. इसलिए, सेटलमेंट प्रोसीडिंग के निपटान के लिए समय-सीमा निर्धारित करना उचित नहीं होगा.

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