हाल ही में साइबर फ्रॉड (Cyber Fraud) के कुछ ऐसे मामले सामने आए, जिनमें ठगों ने एकदम नायाब तरीके से लोगों को अपना शिकार बनाया. साइबर क्राइम का शिकार होने से बचाने के लिए लोगों को लगातार जागरुक किया जाता रहा है, लेकिन अपराधी नई-नई स्क्रिप्ट गढ़कर पढ़े-लिखे लोगों का भी खाता खंगाल ले रहे हैं. ऐसे में हर किसी के लिए यह जानना जरूरी है कि इन अपराधियों के नए हथकंडे कौन-से हैं, जिनसे सतर्क रहना चाहिए.
यहां साइबर क्राइम के 5 मामले बताए जा रहे हैं, जिनमें अलग-अलग तरीकों से ठगी की गई.
हाल ही में दिल्ली की एक महिला डॉक्टर से साइबर ठगों ने करीब 4.5 करोड़ रुपये ऐंठ लिए. ठग स्काइप के जरिए लाइव आकर डॉक्टर को तरह-तरह से झांसा देते रहे. डॉक्टर ने डर के मारे FD तक के पैसे अपराधियों के हवाले कर दिए.
दरअसल, ठगों ने अपने काम को अंजाम देने के लिए फरेब का ऐसे जाल बुना, जिसमें डॉक्टर फंस गईं. पहले एक कॉल आया, जिसमें डॉक्टर से कहा गया कि उनका एक पार्सल पकड़ा गया है, जिसमें पासपोर्ट, बैंक के डॉक्यूमेंट के अलावा 140 ग्राम ड्रग्स भी हैं. डॉक्टर ने अपना ऐसा कोई भी पार्सल होने से इनकार किया, लेकिन ठग स्काइप कॉल के जरिए झांसा देने लगे.
ठगों में कोई खुद को मुंबई का पुलिस अधिकारी बताता, कोई रिजर्व बैंक का अधिकारी, कोई सीमा शुल्क अधिकारी. किसी ने नारकोटिक्स अधिकारी बनकर इस केस में गिरफ्तार करने की धमकी दी. डॉक्टर से कहा गया कि उनकी ID का इस्तेमाल करके मुंबई में 23 बैंक खाते खोले गए हैं, जिनमें मनी लॉन्ड्रिंग का शक है. केस और गिरफ्तारी का डर दिखाकर, साथ ही कमाई की रकम वैध साबित करने के नाम पर महिला डॉक्टर से 4.5 करोड़ रुपये अपराधियों ने ट्रांसफर करवा लिए. जब तक डॉक्टर को शक हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
चंद दिनों पहले नोएडा से भी साइबर फ्रॉड का एक अजीब मामला सामने आया. इस बार ठग ने खालिस्तान से जुड़ा पार्सल सीज होने के नाम पर पैसे ट्रांसफर करवा लिए.
रिपोर्ट के मुताबिक, नोएडा के सेक्टर 47 में रहने वाले एक शख्स के पास फोन कॉल आया. ठग ने कहा कि वह मुंबई के साइबर सेल से बोल रहा है. एक पार्सल पकड़ा गया है, जिसमें उसकी आईडी का इस्तेमाल हुआ है. पार्सल में पासपोर्ट, कुछ ATM कार्ड और सिम हैं. ठग ने झूठी कहानी गढ़ते हुए कहा कि पार्सल खालिस्तान से जुड़ा हुआ है, जिसे कनाडा के एक शख्स ने उसकी ID का इस्तेमाल करते हुए बुक किया है. जब पीड़ित ने कहा कि इस तरह के किसी पार्सल से उसका कोई लेना-देना नहीं है, तो ठग ने उसे जेल भिजवाने की धमकी दी. इतना ही नहीं, मदद के नाम पर एक फर्जी सरकारी वकील का नंबर भी दिया. इसी तरह जाल में फंसाकर करीब 2.5 लाख रुपये ट्रांसफर करवा लिए. बाद में पीड़ित ने थाने पहुंचकर शिकायत दर्ज करवाई.
आज के दौर में शायद ही कोई सोशल मीडिया पर एक्टिव न हो. ऐसे में साइबर ठग भी सोशल मीडिया की आड़ लेकर लोगों के बैंक अकाउंट खंगाल रहे हैं. हाल ही में गुरुग्राम में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ऐसे ही अपराधियों के जाल में फंसकर करीब 40 लाख रुपये गंवा बैठा. देश में इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं. पुलिस ने कुछ दिनों पहले ही राजस्थान के एक गिरोह का भंडाफोड़ करते हुए 4 अपराधियों को गिरफ्तार किया था.
साइबर फ्रॉड का यह तरीका ही ऐसा है कि कोई भी आसानी से फंस सकता है. दरअसल, ठग सबसे पहले वॉट्सऐप पर पार्ट टाइम जॉब का ऑफर देते हैं. कहा जाता है कि हर दिन 5 मिनट से लेकर एक घंटा तक काम कीजिए, आप इससे 500 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक कमा सकते हैं. काम भी एकदम आसान- यूट्यूब के वीडियो लाइक करना, शेयर करना और सब्सक्राइबर बढ़ाना. भरोसा जीतने के लिए पहले तीन वीडियो को लाइक करने को कहा जाता है, जिसके एवज में 150 रुपये तत्काल देने का झांसा दिया जाता है. इस रकम के भुगतान के बहाने बैंक अकाउंट डिटेल मांगा जाता है. अक्सर लोग इसी प्वाइंट पर आकर अपनी गोपनीय जानकारी भी साझा कर देते हैं. बस, इधर भूल हुई, उधर खाता साफ!
साइबर फ्रॉड करने वाले नई-नई टेक्नोलॉजी आजमाते रहते हैं. इनमें से एक तरीका तो ऐसा है, जिसमें कोई भी आसानी से फंस जाए. जालसाज किसी के कंप्यूटर या लैपटॉप पर एक पॉपअप चला देते हैं, जिसका मैसेज पढ़कर किसी के भी होश उड़ सकते हैं. पिछले साल ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं.
सर्फिंग के दौरान किसी के कंप्यूटर या लैपटॉप पर अचानक एक पॉपअप उभरता है, जिसमें लिखा होता है, 'आपका कंप्यूटर ब्लॉक हो गया है.' इसमें बताया जाता है कि चूंकि आपने गैरकानूनी तरीके से पॉर्न साइट देखी है, इसलिए आपके खिलाफ कानून और न्याय मंत्रालय ने केस दर्ज कर लिया है. पॉपअप में भारत सरकार के कुछ प्रतीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है, जिससे सबकुछ असली मालूम पड़े. केस का बाकायदा 'डिक्री नंबर' भी बताया जाता है. साथ ही चेतावनी दी जाती है कि अगर आपने इस कंप्यूटर या ब्राउजर को खुद से अनब्लॉक करने की कोशिश की, तो पुलिस आपको ढूंढकर गिरफ्तार कर लेगी. इस केस से तत्काल छूटने के लिए 6 घंटे के भीतर करीब 30 हजार रुपये का भुगतान करने को कहा जाता है. तुरंत भुगतान करने के लिए कार्ड नंबर, IFSC और CVV का स्पेस दिया रहता है. केस से पिंड छुड़ाने के चक्कर में कई लोग आसानी से ठगों को पैसे ट्रांसफर कर देते हैं. अगर आपके साथ कभी ऐसा हो, तो समझ लीजिए कि यह साइबर ठगों की करतूत है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)के इस्तेमाल को लेकर दुनियाभर में बहस छिड़ी हुई है. इसके गलत इस्तेमाल की खबरें भी आती रहती हैं. हाल ही में चीन से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें AI पर आधारित 'डीप फेक तकनीक' (Deep Fake Technology) के जरिए बड़ी रकम उगाह ली गई.
दरअसल, 'डीप फेक टेक्नोलॉजी' के जरिए किसी की फोटो या वीडियो में उसके चेहरे को किसी दूसरे के चेहरे से बदल दिया जाता है. इसमें AI का इस्तेमाल करके फेक फोटो या वीडियो बना दिए जाते हैं, जो देखने में असली जैसे लगते हैं. चीन में साइबर ठग ने इसी तकनीक का इस्तेमाल किया. पीड़ित व्यक्ति के पास उसके दोस्त के नाम से वीडियो कॉल आया. ठग ने उसके दोस्त जैसा चेहरा बनाकर, वीडियो कॉल पर बात करके पैसे मांगे. अपने 'दोस्त' का यकीन हो जाने पर उस व्यक्ति ने 4.3 मिलियन युआन (5 करोड़ से ज्यादा रुपये) ट्रांसफर कर दिए. मामला भले ही चीन का है, पर सबके दिमाग की बत्ती जलाने वाला है. पड़ोस से एक कटोरी चीनी आने में जितना वक्त लगता है, उससे कम समय में साइबर ठग आइडिया चोरी कर लेते हैं.
साइबर फ्रॉड के प्रचलित तरीकों से भी लोगों के खाते खंगालने का काम चल रहा है. इनमें बैंक की e-KYC करवाने के नाम पर, ऑनलाइन जॉब या लोन दिलवाने के नाम पर अकाउंट डिटेल और ओटीपी पूछा जाना शामिल है. एक समय टीवी शो KBC में 'लॉटरी' लगने का झांसा देकर पैसे ठगने का दौर चला था. हाल के दिनों में बिहार में मैट्रिकुलेशन की कॉपी में नंबर बढ़वाने का झांसा देकर पैसे ट्रांसफर करवाने की रिपोर्ट आई.
बस, जानकारी ही बचाव है! हरेक बैंक और एटीएम के आगे मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा होता है कि अपने खाते से जुड़ी कोई भी गोपनीय जानकारी, पासवर्ड या ओटीपी वगैरह किसी से भी शेयर न करें. इसके बावजूद लोग ठगों के झांसे में आ जाते हैं. यह अलग बात है कि साइबर अपराधी नए-नए तरीकों से लोगों को अपने चंगुल में फंसाते रहते हैं. ऊपर के दो मामलों में ठगों ने पार्सल में आपत्तिजनक सामग्री होने की बात कहकर डराया. ऐसा कोई भी कॉल आने पर, उस पर यकीन करने की जगह स्थानीय पुलिस को जल्द से जल्द मामले की जानकारी देनी चाहिए. अपने 'आधार' के बायोमेट्रिक डेटा को लॉक रखना एक बेहतर उपाय है. जब तक जरूरी न हो, इसे अनलॉक न करें. और जरा सोचिए, एक वीडियो को लाइक करने के बदले 50 रुपये कौन बांटता चलता है? इस तरह के लालच में आना, मुसीबत को दावत देने जैसा ही है. जहां तक AI का सवाल है, इस पर हर किसी को अपने आंख-कान खुले रखने की जरूरत है.