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कहानी झमाझम 'मॉनसून' की; कैसे बनते हैं बादल और कैसे होती है बारिश!

देश के ज्यादातर क्षेत्रों में सालाना बारिश का करीब 75% हिस्सा गर्मी के दिनों के मॉनसून पर ही निर्भर है.
NDTV Profit हिंदीNDTV Profit डेस्क
NDTV Profit हिंदी12:28 PM IST, 27 Apr 2024NDTV Profit हिंदी
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इस साल मॉनसून कैसा रहने वाला है, इसको लेकर मौसम विभाग का पूर्वानुमान आ चुका है. भारतीय मौसम विभाग (India Meteorological Department) ने इस बार सामान्य से ज्यादा बारिश की संभावना जताई है. लेकिन ये मॉनसून है क्या और इसका पूरा सिस्टम कैसे काम करता है? मॉनसून और बारिश से जुड़े सवाल और उनके जवाबों पर एक नजर डाल लेते हैं.

IMD ने क्या कहा?

मौसम विभाग ने कहा है कि अबकी देश में मॉनसून के दौरान लंबे समय के औसत (LPA) से कुछ ज्यादा, 106% बारिश की संभावना है. अगर वर्षा की इस मात्रा को सेंटीमीटर में देखें, तो विभाग का कहना है कि इस बार 91.5 सेंटीमीटर तक वर्षा हो सकती है. वैसे जून से सितंबर के चार महीनों के दौरान देशभर में औसतन 87 सेंटीमीटर बारिश होती है.

IMD ने कहा है कि बाद के दो महीनों, अगस्त-सितंबर में ज्यादा बारिश होगी. हालांकि कुछ राज्यों में सामान्य से कम बारिश की संभावना है. पिछले साल मॉनसून के दौरान सामान्य से 6% कम बारिश हुई थी. मौसम विभाग मई के अंतिम सप्ताह में मॉनसून के सीजन की बारिश के लिए अपना दूसरा पूर्वानुमान जारी करेगा.

मॉनसून क्या है?

सबसे पहले 'मॉनसून' शब्द को देखते हैं. 'मॉनसून' अरबी शब्द 'मौसिम' से निकला है, जिसका मतलब होता है- मौसम. आगे चलकर 'मॉनसून' शब्द का इस्तेमाल उन हवाओं के लिए किया जाने लगा, जो गर्मी के दिनों में समुद्र से जमीन की ओर चला करती हैं. साथ ही सर्दियों में इसके उलट, जमीन से समुद्र की ओर चला करती हैं. दक्षिण-पश्चिम मॉनसून और उत्तर-पूर्व मॉनसून की खूब चर्चा होती है.

दरअसल, भारत में जून से सितंबर, चार महीने तक हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाली नम हवाएं बहुत बड़े भाग में बारिश करती हैं. ये हवाएं दक्षिण-पश्चिम दिशा से आती हैं, इसलिए इन्हें 'दक्षिण-पश्चिम मॉनसून' कहा जाता है. जब हवाएं ठंडे से गर्म इलाकों की ओर बहती हैं, तो उनमें नमी की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे वर्षा होती है.

जाड़े के दिनों में इन हवाओं की दिशा बदल जाती है. ये उत्तर-पूर्व दिशा से समुद्र की ओर चलती हैं, इसलिए इन्हें 'उत्तर-पूर्व मॉनसून' कहा जाता है.

इसका सिस्टम कैसे काम करता है?

गर्मी के मौसम में धरती का तापमान समुद्र तल के तापमान से काफी ज्यादा हो जाता है. ऐसे में धरती के ऊपर हवा का दबाव कम हो जाता है, जिससे समुद्र से धरती की ओर हवा बहने लगती है. ये हवाएं समुद्र से बड़ी मात्रा में भाप लेकर चलती हैं और धरती पर पानी बरसाती हुई आगे बढ़ती जाती हैं.

ये हवाएं हिंद महासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी को पार करती हुई भारत के पर्वतीय ढलानों से टकराकर वर्षा करती हैं. देश के ज्यादातर क्षेत्रों में सालाना बारिश का करीब 75% हिस्सा गर्मी के दिनों के मॉनसून पर ही निर्भर है.

हमारे देश की आकृति की वजह से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून दो शाखाओं में बंट जाता है- अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा. एक शाखा अरब सागर की तरफ से महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान होते हुए आगे बढ़ती है.

दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी की तरफ से पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर के भागों से होते हुए पर्वतीय भागों से टकराती है और गंगा के इलाकों की ओर मुड़ जाती है. इस तरह देशभर में मॉनसून का फैलाव हो जाता है और वर्षा होती है.

मॉनसून कब आता है?

देश में गर्मी के सीजन में मॉनसून की सक्रियता जून से सितंबर तक रहती है. दक्षिण-पश्चिम मॉनसून केरल में अमूमन 1 जून को दस्तक देता है. इसी डेट से पता करते हैं कि मॉनसून ठीक समय से आ रहा है या देरी से.

आगे चलकर बीच जुलाई तक यह पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को अपने प्रभाव में ले लेता है. इस बार मॉनसून केरल में कब दस्तक देगा, इसका अनुमान मौसम विभाग 15 मई को जारी करने वाला है.

'सामान्य बारिश' किसे कहते हैं?

'सामान्य बारिश' क्या है, इसका पैमाना पता चल जाए, तभी यह समझा जा सकेगा कि सामान्य से ज्यादा या कम बारिश का क्या मतलब है. देशभर में वर्षा की गणना 1971-2020 तक की 50 साल की अवधि में वर्षा के आंकड़ों के आधार पर की गई है.

इसी के लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) को बारिश मापने के लिए बेंचमार्क के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. देश में साल 1971 से 2020 तक की अवधि के लिए बारिश का LPA 87 सेंटीमीटर है. 'सामान्य वर्षा' या LPA को हर 10 साल में अपडेट किया जाता है.

देशभर में अगर मॉनसूनी बारिश LPA के 104-110% के बीच रहती है, तो इसे 'सामान्य से ऊपर' माना जाता है. साल 1951 से 2023 के बीच, भारत में केवल नौ मौकों पर मॉनसून के मौसम में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई.

मॉनसून क्यों जरूरी है?

देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए मॉनसून बहुत जरूरी है, क्योंकि यह खेती का प्रमुख आधार है. देश में आधी से ज्यादा खेती-किसानी मॉनसून की बारिश पर ही निर्भर है. अगर मॉनसून खराब हो, तो पैदावार कम होती है, जिससे महंगाई बढ़ने की आशंका रहती है.

ये समझना भूल होगी कि जहां सिंचाई के दूसरे आधुनिक साधन उपलब्ध हैं, वहां के लिए मॉनसून जरूरी नहीं है. अगर बारिश नहीं होगी, तो जमीन के अंदर पानी का स्तर धीरे-धीरे बहुत नीचे चला जाएगा और फिर कोई साधन काम नहीं आएगा. बारिश की वजह से ही नदी, तालाब, झील आदि में पानी की उपलब्धता रह पाती है.

बेहतर मॉनसून से न केवल पानी के भंडार और अनाजों की उपज पर बढ़िया प्रभाव पड़ता है, बल्कि इससे बिजली के उत्पादन और खपत पर भी असर पड़ता है. चिलचिलाती गर्मी से राहत तो मिलती ही है. तभी तो सबको हर साल झमाझम बारिश का इंतजार रहता है.

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