International Women's Day: देश-दुनिया के वर्कफोर्स में तेजी से सिमटता जा रहा है जेंडर गैप!

भारत में जेंडर गैप अमेरिका या यूरोपियन यूनियन की तुलना में 4 गुना ज्यादा बना हुआ है. इसकी वजह भी साफ है. एक तो महिलाओं के काम करने को लेकर अभी भी समाज की परंपरागत सोच ज्यादा नहीं बदल पाई है.

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इंटरनेशनल वीमेंस डे से ठीक पहले एक रिपोर्ट आई है. इसमें कामकाजी महिलाओं को लेकर कई अच्छी बातें हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में रोजगार के मामले में जेंडर गैप में बड़ी कमी आई है. खास बात ये कि कोरोना महामारी के बाद से भारत और फिलीपींस में इस जेंडर गैप में सबसे बड़ी कमी आई है.

जेंडर गैप में भारत कहां खड़ा है?

भारत में जेंडर गैप अमेरिका या यूरोपियन यूनियन की तुलना में 4 गुना ज्यादा बना हुआ है. इसकी वजह भी साफ है. एक तो महिलाओं के काम करने को लेकर अभी भी समाज की परंपरागत सोच ज्यादा नहीं बदल पाई है. साथ ही महिलाओं को लेकर पॉलिसी भी बहुत ज्यादा मददगार नहीं हो पाई है.

रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं की भागीदारी की दर यूरोपियन यूनियन में 2021 में ही महामारी से पहले के स्तर से ऊपर उठ चुकी है. अमेरिका में यह स्तर 2022 में आ सका.

वर्कफोर्स में एक बड़ा बदलाव आ रहा है

मूडीज एनालिटिक्स की रिसर्च में कहा है कि दुनियाभर के वर्कफोर्स में एक बड़ा बदलाव देखा जा रहा है. महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से दुनियाभर में जेंडर गैप कम हो रहा है. कामकाजी महिलाओं की वजह से उनकी आधी आबादी को तो फायदा होता ही है, साथ ही उत्पादन बढ़ने से कंपनियों को भी फायदा होता है. नतीजतन, इनकम टैक्स के जरिए सरकारों का भी खजाना भरता है.

सवाल है कि वर्कफोर्स में भागीदारी की दर को तय कैसे किया जाता है? तो इसमें 20 से 64 साल की आयु की उस आबादी को शामिल किया जाता है, जिसके पास या तो कोई रोजगार हो या वह सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश में हो.

अगर जेंडर गैप कम होने की वजह की बात करें, तो एक बड़ा कारण यह है कि बढ़ती महंगाई ने दुनियाभर में एक बड़ी आबादी का घरेलू बजट बिगाड़ दिया है. इससे महिलाओं को काम के लिए आगे आना पड़ रहा है. साथ ही महामारी के बाद के दौर में कामकाज की शर्तों में ज्यादा लचीलापन आया है. 'वर्क फ्रॉम होम' जैसी सुविधाओं से एक बड़ी आबादी के लिए नए दरवाजे खुल रहे हैं.

मौजूदा वर्कफोर्स और महिलाएं

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization) के आंकड़ों के मुताबिक, मौजूदा ग्लोबल वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी दर 47% से कम है. पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 72% है. साफ है कि दोनों के बीच 25 फीसदी अंक का अंतर है. दुनिया के कुछ भागों में यह अंतर 50 फीसदी अंक से भी ज्यादा है.

दुनियाभर में कामकाज में जेंडर गैप कम होना बहुत जरूरी है. महिलाओं को उनकी पसंद के हिसाब से काम करने की आजादी मिलना उनका अधिकार है. वर्कफोर्स में जेंडर गैप कम होना आर्थिक नजरिए से तो जरूरी है ही. इस गैप के कम होने से अलग-अलग देशों के साथ-साथ ग्लोबल जीडीपी में भी तेज बढ़ोतरी मुमकिन है.

आप सभी को इंटरनेशनल वीमेंस डे की ढेर सारी शुभकामनाएं.

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