AT-1 बॉन्ड मामले में यस बैंक पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को दी चुनौती

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में इन बॉन्ड्स को राइट डाउन करने के फैसले को खारिज करते हुए आदेश दिया था कि बैंक को इसे दोबारा बहाल करना चाहिए

Source: Reuters

यस बैंक (Yes Bank) का AT-1 यानी अतिरिक्त टियर-1 (Additional tier-1) बॉन्ड्स को राइट ऑफ करने मामला अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंच गया है. यस बैंक ने 20 जनवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है, जिसमें कोर्ट ने AT-1 बॉन्ड्स को राइट ऑफ करने के फैसले को खारिज कर दिया था. ये जानकारी मामले की जानकारी रखने वाले दो लोगों ने दी है.

'एडमिनिस्ट्रेटर को पूरा अधिकार था'

मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने नाम नहीं बताने की शर्त पर जानकारी दी कि, यस बैंक का तर्क है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से नियुक्त एडमिनिस्ट्रेटर के पास 14 मार्च, 2020 को 8415 करोड़ रुपये के बॉन्ड्स को पूरी तरह राइट ऑफ करने का अधिकार था. BQ प्राइम ने याचिका की कॉपी नहीं देखी है.

दरअसल, बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में इन बॉन्ड्स को राइट डाउन करने के फैसले को खारिज करते हुए आदेश दिया कि बैंक को इसे दोबारा बहाल करना चाहिए, यही बात यस बैंक के लिए बड़ी चुनौती बन गई है.

'एडमिनिस्ट्रेटर अपने अधिकारों से आगे बढ़ा'

अपने आदेश में एक्टिंग चीफ जस्टिस एस एम मोदक ने कहा कि 'ऐसा लगता है कि 13 मार्च, 2020 को जब बैंक का पुनर्गठन हुआ तो AT-1 को राइट डाउन करने में एडमिनिस्ट्रेटर ने अपनी शक्तियों और अधिकारों से आगे बढ़कर इस्तेमाल किया.'

बॉम्बे हाई कोर्ट ने यस बैंक को आदेश जारी होने के बाद चुनौती देने के लिए 6 हफ्ते का वक्त दिया था. अगर वो कोई याचिका दाखिल नहीं करता है तो बैंक को बॉन्ड्स को बहाल करना होगा.

मामले की जानकारी रखने वाले दूसरे व्यक्ति का कहना है कि बॉन्डहोल्डर के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के आदेश के बाद एक कैविएट दाखिल की है. कैविएट में कहा गया है कि यस बैंक जब भी कोर्ट में चुनौती दाखिल करे, सुप्रीम कोर्ट बॉन्डोहोल्डर्स को सुने बिना कोई भी अंतरिम आदेश जारी न करे.

दोनों सूत्रों के मुताबिक, यस बैंक की चुनौती अभी सुप्रीम कोर्ट में लिस्ट नहीं हुई है. रिजर्व बैंक इस मामले में पार्टी बनने पर विचार कर रहा है और रेगुलेटर का दृष्टिकोण रखना चाहता है. BQ प्राइम ने ये जानकारी पहले दी थी.

क्या है मामला?

ये मामला 14 मार्च, 2020 का है, जब यस बैंक एडमिनिस्ट्रेटर ने एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें ये कहा गया था कि यस बैंक की खराब होती वित्तीय हालत को देखते हुए और एक रीकंस्ट्रक्शन स्कीम की जरूरत को देखते हुए AT-1 बॉन्ड्स को राइट डाउन करने का फैसला किया गया है. एडमिनिस्ट्रेटर ने इस राइट ऑफ की जानकारी एक्सचेंज को दी.

एक बात तो निश्चित है कि कोर्ट ने इस फैसले की वैधता पर कोई फैसला नहीं दिया, बल्कि तकनीक पर था, जैसे कि वो समय जब एडमिनिस्ट्रेटर ने ये फैसला लिया कि बॉन्ड्स को राइट डाउन करना है.

हाई कोर्ट के मुताबिक, 14 मार्च, 2020 के पहले, रिजर्व बैंक और सरकार यस बैंक को बचाने के लिए अंतिम रीकंस्ट्रक्शन प्लान को मंजूरी दे चुके थे, जिसमें AT1 बॉन्ड को राइट डाउन करने का जिक्र नहीं था.

कोर्ट ने कहा कि इस अवधि के दौरान एडिमिस्ट्रेटर को AT-1 बॉन्ड को राइट डाउन करने के फैसला नीतिगत फैसला नहीं लेना चाहिए था, रिजर्व बैंक ने उसको ऐसा करने के लिए ऑथराइज नहीं किया था. अंतिम रीकंस्ट्रक्शन योजना भी एडमिनिस्ट्रेटर को ये अधिकार नहीं देती है कि वो AT-1 बॉन्ड को राइट ऑफ कर दे.'

हाई कोर्ट के आदेश के बाद, यस बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर प्रशांत कुमार, जो मार्च 2020 में एडमिनिस्ट्रेटर भी थे, पत्रकारों को बताया कि बैंक पास बेहद मजबूत कानूनी जमीन है इस चुनौती को दाखिल करने के लिए.

उन्होंने कहा कि 'हमारे पक्ष में बहुत मजबूत कानूनी राय है, इस समय, हमारी बैलेंस शीट पर कोई तुरंत प्रॉविजनिंग करने की जरूरत नहीं.' उन्होंने कहा कि बेहद खराब स्थिति में भी अगर बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के मुताबिक बॉन्ड्स बहाल हुए तो, इन बॉन्ड्स पर ब्याज देने का फैसला बैंक के विवेक पर निर्भर होगा.

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